कल न हम होंगे न कोई गिला होगा !
सिर्फ सिमटी हुई यादों का सिलसिला होगा
बढ़ कदम रुकने न पाये
राह काँटों से भरी हो,
या उमड़ती सी सरी हो,
जीत की चाहत खरी हो,
काल सिर नत हो झुकाये।
बढ़ कदम रुकने न पाये।
पंख अपने आजमाता,
नीड़ तिनके चुन बनाता,
एक पंछी यह सिखाता,
भाल, साहस कब झुकाये।
बढ़ कदम रुकने न पाये।
ढूँढता फिरता कहाँ रे,
हाथ में तेरे सितारे,
जाग खुद जग को जगा रे,
आंधियाँ दिल में छुपाये।
बढ़ कदम रुकने न पाये।
खींच अंबर को धरा पर,
पाँवों के अपने बराबर,
तू ही चन्दा तू दिवाकर
राह जग को जो दिखाये।
बढ़ कदम रुकने न पाये।
लक्ष्य नजरों में बसे जब,
पाँव थकते फिर कहाँ कब,
चाह सब पूरी करे रब,
साथ विधना मुस्कुराये।
बढ़ कदम रुकने न पाये।
जय भीम नमो बुद्धाय
सबका मंगल हो
सौ : विमल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें