मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016

'आज देश की राजनीति देख रोना आता है'

'आज देश की राजनीति देख रोना आता है'. : रशीद मसूद
हिंदुस्तान की राजनीति जब आज़ाद
भारत में क़दम रखती है तब से लेकर अब
तक के सफ़र में बहुत बदलाव हुए हैं.
आज़ादी के बाद नेहरू के नेतृत्व में देश
आगे बढ़ना शुरू करता है और चीन से युद्ध
तक आता है. इस दौर में सबसे अच्छी
बात यह थी कि अधिकतर लोग ऐसे थे
जो देश की आज़ादी के लिए लड़े थे.
अलग-अलग विचारधाराओं के लोग थे.
लोहिया, जयप्रकाश नारायण जैसे
लोग अलग दिशा में चल निकले थे.
कांग्रेस में भी वैचारिक भिन्नता थी, महावीर
त्यागी और नेहरू के विचार अलग थे पर सार्वजनिक रूप से या व्यक्ति विशेष पर आरोप-प्रत्यारोप की परंपरा नहीं थी.
हालांकि बँटवारे का दर्द लोगों के दिलों में था और इसे जनसंघ ने भुनाने की कोशिश की पर आज़ादी का श्रेय कांग्रेस को मिला था और नेहरू इसके नेता बनकर उभरे थे इसलिए देश का लोकतांत्रिक स्वरूप कमज़ोर
होने के बजाय मज़बूत होता गया.
विरोधों, मतभेदों और वैचारिक भिन्नता के बावजूद सभी एक बात पर सहमत थे कि इस देश को आगे बढ़ाना है.
इसी बीच केरल में कम्युनिस्ट पार्टी ने सरकार बना ली. यानी आज़ादी के 10 साल के अंदर ही केंद्र और
अन्य राज्यों में कांग्रेस की सरकार होते हुए भी आम
लोगों ने लोकतंत्र की ताकत का एक उदाहरण पेश कर दिया. इससे लगा कि हमारे देश का लोकतांत्रिक स्वरूप मज़बूत होता जा रहा है.
राजनीतिक हमले होते थे पर नीतियों को लेकर,
विचारधाराओं को लेकर. कृष्ण मेनन जी के ख़िलाफ़ नीतियों के विरोध में हुए आक्षेपों से सार्वजनिक रूप
से राजनीतिक हमलों की शुरुआत हुई पर निजी
आक्षेप अभी भी नहीं थे.
फिर लालबहादुर शास्त्री की मौत के बाद इंदिरा
गांधी को लेकर कांग्रेस दो फाड़ हुई और वहीं से
निजी आक्षेपों का दौर भारतीय राजनीति में शुरू
हुआ पर यहाँ भी एक मर्यादा बाक़ी थी.
इंदिरा और उनके बाद
इंदिरा गांधी ने भारतीय राजनीति को फिर से दो
हिस्सों में बाँट दिया और अब लड़ाई अमीरों और
ग़रीबों के बीच की बन गई. आगे चलकर उनके मतभेद कामराज जी से भी बढ़े और उन्होंने अपने को अकेला
पाते हुए संजय गांधी को राजनीति में उतारा. इसी
दौरान देश में 25 जून, 1975 को आपातकाल लगा.
भारतीय राजनीति का यह सबसे बुरा दौर था.
हालांकि आपातकाल में शुरुआत के कुछ
महीने बहुत अच्छे काम हुए. क़ानून
व्यवस्था की चरमराई हालत सुधरी पर
यह तबतक था जबतक संजय गांधी को
बागडोर नहीं सौंप दी गई. संजय
गांधी को लाना और उनका
निरंकुशता के साथ काम करना और इस
तरह संविधान की मर्यादा और
संवैधानिक व्यवस्था को पीछे कर देना
ही भारतीय राजनीति में एक ऐसी
परंपरा को पैदा कर गया जो हम आज
तक झेल रहे हैं.
हमने देश की आज़ादी की लड़ाई को तो नहीं देखा
पर इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ देश में जिस तरह से
आंदोलन खड़ा हुआ, उसे देखकर लगा कि शायद
आज़ादी के लिए यही जज़्बा देश के नौजवानों में
रहा होगा.
इसके बाद सत्ता बदलीं पर एक ग़लत परंपरा की शुरुआत
देश की राजनीति में हो चुकी थी जो बाद में कई
लोगों का चरित्र बनी.
वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हुई जिसके बाद
सुनियोजित रूप से सिखों के ख़िलाफ़ दंगे हुए. दंगों में
सिखों को बचाने की कोशिश करने वाले
कांग्रेसियों की नज़र में गद्दार थे. यह राजनीति में
वफ़ादारी की एक नई परिभाषा थी.
इसके बाद राजीव आए, वो संजय से अलग थे. शांत थे
और शरीफ़ थे. इसके बाद 1989 में राजनीति ने फिर पलटी खाई और अब पहली बार ऐसा हुआ जब किसी
मंत्री ने प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार का आरोप
लगाकर अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया.
बोफ़ोर्स तोप सौदे को लेकर राजीव गांधी पर
निजी रूप से आरोप लगने शुरू हुए और भारतीय
राजनीति में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई और
खुलकर निजी स्तर पर आरोप लगाने की शुरुआत यहीं से हुई.

अपराधीकरण

इसी दौरान बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति
में एक बड़ा बदलाव हुआ. राजनीति से जुड़े कुछ लोगों
को लगा कि चुनाव जिताने-हराने में बाहुबलियों
की महत भूमिका हो सकती है और इसलिए इनका
सहयोग लिया जाए. यहाँ से राजनीति के
अपराधीकरण की शुरुआत हो गई जो बाद में दूसरे
राज्यों में भी शुरू हो गया.
हाँ मगर कुछ ही दिनों में बाहुबलियों
को लगा कि अगर हम इनको बना
सकते हैं तो ख़ुद क्यों नहीं बन सकते हैं.
यहाँ से इस देश की बदकिस्मती की
एक और दास्तां शुरू होती है जिसका
रोना हम आज तक रो रहे हैं.
गुंडे राजनीति में आए और बड़े पदों पर
पहुँचे और जो उनसे अपेक्षित था, आज
वही देश की पूरी राजनीति में हो
रहा है. आज कोई मूल्य नहीं हैं. कुछ
गिनती के लोग अच्छे भी हैं पर हद यह
हो गई है कि आज जब मैं गांधी टोपी पहनकर
निकलता हूँ तो बच्चे कहते हैं कि देखो साला बेईमान नेता जा रहा है.
और विडंबना यह है कि यह केवल राजनीति का हाल
नहीं है, जब आम आदमी ने देखा कि गुंडे सत्ता
हासिल कर रहे हैं तो उसकी मानसिकता भी ताक़त
हासिल करने की हो गई और आज पूरा समाज उसी
तरह का व्यवहार करता नज़र आ रहा है.
समाज का हर वर्ग भ्रष्ट हो चुका है और राजनीति
को देश के इस चरित्र का श्रेय जाता है. जो साफ़
छवि के हैं उन्हें ज़बरदस्ती फंसाया जा रहा है. अपनी
60 बरस की ज़िंदगी और 40 बरस की राजनीति के बाद देश की यह स्थिति देखकर मुझे रोना आता है.

(उत्तर प्रदेश के सहारनपुर संसदीय क्षेत्र से
समाजवादी पार्टी के सांसद रशीद तीसरे मोर्चे की ओर से उपराष्ट्रपति पद के
प्रत्याशी थे. यह लेख रशीद मसूद की बीबीसी
संवाददाता पाणिनी आनंद से हुई बातचीत पर
आधारित है.)

संसद या अखाडा

हमारे देश की राजनीती एक अखाडा बन रह गयी है।
जहाँ हमारे नेतागण एक पहलवान की तरह अपने
राजनितिक दल का समर्थन करते हुए अखाड़े में सदा
एक दूसरे से लड़ते ही रहते है। हमारी संसद की जब कोई
महत्वपूर्ण बैठक चल रही हो या किसी मुद्दे पर बहस
हो रही हो तो सोचकर बड़ा अफ़सोस होता है कि
वहां का नज़ारा घर के बच्चों के लड़ने जैसे कोलाहल
से भी ज्यादा ख़राब प्रतीत होता है। उसमे तो कई
नेता इतने शोर शराबे के बीच में भी अपनी घर की
नींद वहां ऐसे पूरी कर लेते है जैसे उन्हें घर में कई दिनों
से सोने को नहीं मिला हो। संसद में जो कुछ भी
होता है वह तो गाँव स्तर की बैठक में भी नहीं
होता है। देखा जाये तो हमारे देश में योग्य नेताओं
की कमी सी महसूस होती है। कहने को तो भारत
एक प्रजातांत्रिक देश कहलाता है किन्तु अफ़सोस
प्रजा के लिए और वो भी तब के मसलन किसान,
मजदूर आदि के लिए ज्यादा बेहतर सुविधाए उपलब्ध
नहीं हो पा रही है। आज भी अनेक गांवों में पक्की
सड़के और बिजली नहीं है। लाखों लोग भीख मांगने
को मजबूर है। कई परिवार खुले आसमान के निचे सोने
को मजबूर है। अंत में बस इतना ही कहना चाहूँगा कि
इतना सब होने पर
भी हमारी सरकारे सोयी हुई है।

लोकतंत्र दिन को "काला दिन" मनाने वालो पर अब तक देशद्रोह की कारवाई नहीं हुई है..

देश द्रोह की सुप्रीम कोर्ट ने व्याख्या की है
" देश के विरोध में कृती करना "
भारत देश में जब से  आक्रमणकारी विदेशी आर्यब्राम्हण आए हैं, तब से लेकर आजतक यह ब्राम्हण देश विरोधी कृती करते आ रहे हैं, और आज भी करते हैं ।
विदेशी आर्यब्राम्हण भारत देश में आने के पहले यहाँ एकसंघ समाज था ।
विदेशी आर्यब्राम्हणो ने एकसंघ भारतीय समाज को जाती-जाती में बांट दिया ।
जाती के आधार पर भेदभाव किया गया ।
भारतीय समाज को मानवी मूल्ये,अधिकार  नकारे गए । यह सब कृतीयाॅ अमानवीय,    समाज द्रोही, राष्ट्र द्रोही, देश विरोधी कृती है । जो  आज भी होती है । देश में हर दिन ऐसी कई घटनाएं घटती है । परंतु आज तक किसी समाज घातकी,देश घातकी, विदेशी आर्यब्राम्हणो पर  देश द्रोह का गुनाह नहीं लगाया गया ।"समाज को तोडना मतलब देश को तोडना है"।और यह काम ब्राम्हणों का ब्राम्हणवाद करता है इसलिए देश में "सबसे बड़ा आंतकवाद, ब्राम्हणवाद है "।और इसे ब्राम्हणो का संघटन " राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ " आरएसएस चलाता है । आर एस एस अपनी कई संगठन जैसे एबीवीपी, बजरंग दल, भा.ज.प, विश्व हिन्दू परिषद,हिन्दू महासभा, सनातन संस्था  र्इत्यादी के माध्यम से देश में ब्राम्हणवाद का काम करते रहते है ।और ब्राम्हणी व्यवस्था  को बरकरार रखने का काम करते रहते है । "लोकतंत्र दिन"(26 जनवरी )
को  "काला दिन मनाना " यह देश विरोधी कृती है, तो भी लोकतंत्र दिन को " काला दिन" मनाने वालो पर अब तक देश द्रोह की कारवाई  नहीं हुई है । भारत देश के आजादी के आंदोलन में आर एस एस के लोग नहीं थे, इनके  नेताओं ने ब्रिटिश सरकार को लिखकर दिया था कि, हमारा  भारत देश के आजादी के आंदोलन से कोई संबंध नहीं है । यह देश के  विरोध में कृती है । इस देश का नाम "भारत " है । और यह नाम संविधान समिति ने सर्वसम्मति से मंजूर किया गया है । तो भी आर एस एस के  विदेशी आर्यब्राम्हण भारत देश को हिन्दूस्तान कहते हैं। यह देश विरोधी कृती है । आर एस एस के विदेशी आर्यब्राम्हण  भारत देश में अलग-अलग विवाद कर के  मूलभारतीयों में झगड़े लगाने का काम करते हैं । जैसे जातीवाद, प्रांतवाद, भाषावाद, मंदिर वाद,  गायवाद, उच्च-ऐनिच्च वाद, हिंदू - मुस्लिम वाद, हिंदू - इसाई वाद इत्यादी वाद निर्माण करके मूलभारतीय समाज में झगड़े लगाने का काम करते रहते है । और देश में  अशांति  रहे, इसके लिए  का काम करते रहते है । यह काम समाज और राष्ट्र निर्माण में बाधा उत्पन्न करने वाला  काम है । और यह काम विदेशी आर्यब्राम्हण सदियों से करते आ रहे है, और आज भी करते हैं ।   इन जातीवादी, विषमतावादी विदेशी आर्यब्राम्हणो के ब्राम्हणी व्यवस्था के विरोध में, कोई मूलभारतीय मानवी मूल्यों के आधार पर अगर बात करता है, बोलता है, तो उस पर देश विरोधी कारवाई की जाती है । यह  "उल्टा चोर, कोतवाल को डांटे," जैसा है ।
जो मूलभारतीय संविधान की बात करते हैं, अपने अधिकारों की बात करते हैं, विदेशी आर्यब्राम्हण उसे  देश विरोधी कहते हैं । हैदराबाद विश्वविद्यालय  का रोहीत वेमूला, जो कि "पी एच डी.की पढाई कर रहा था । वह भारतीय संविधान ने हर भारतीयोंको दिए, अपने अधिकारों के प्रति जागृत था, यही बात विदेशी आर्यब्राम्हणो के आर एस एस सरकार को नहीं जची। रोहित वेमूला समतावादी राष्ट्रपिता ज्योतीबा फुले,  राष्ट्रनायक शाहु महाराज , राष्ट्रनिर्माते डाॅ. बाबासाहेआंबेडकर, पेरियार रामसामी इन भारतीय महापुरुषोंके विचारों का प्रतिनिधित्व करता था । मानवी मूल्यों के विचारों का  आदान-प्रदान करता था । और उसी  विश्वविद्यालय में विषमतावादी, जातीयवादी,विदेशी आर्यब्राम्हणो का  आर एस एस का कार्यरत संघटन " एबीवीपी " को  रोहीत के  विचारों से  बाधा उत्पन्न हुई, उसके साथ जाती के आधार पर भेदभाव किया गया । उसे प्रताड़ित किया गया । उसका दमन,शोषण किया गया ।  विश्वविद्यालय से, होस्टल से,लायब्रेरी से संस्था के पूरे परिसर से रोहित और उसके साथी  को बाहर निकाला गया । वह आम रस्ते पर रहे ।और आखिरकार जातीवादी, विषमतावादी ब्राम्हणी व्यवस्था ने  रोहित  को बली चढा दिया गया । यह ब्राम्हणी व्यवस्था का "Institutional Murder" है ।  यह देश विरोधी कृत्ये है । और आर एस एस सरकार ने अपने देश विरोधी ओ पर अब तक कोई कारवाई नहीं की है ।
देश में ऐसे मूलभारतीयोंको, समतावादी, मानवी मूल्यों का आदान-प्रदान करने से, विषमतावादी  विदेशी आर्यब्राम्हणो को  बाधा उत्पन्न हुई, उसके कारण कई मूलभारतीयोंको अपने प्राण गंवाए पडे ।
"सामाजिक समता राष्ट्र निर्माण है । और       विदेशी ब्राम्हण इसके विरोध में है।"
सामाजिक समता और राष्ट्र निर्माण के लिए जिन मूलभारतीयों ने काम किए,उनके साथ विदेशी आर्यब्राम्हणो ने दूर्व्यवहार किये हैं, उनकी हत्याएँ की गयी है । हत्या के प्रयास किए गए हैं ।  उनके साथ छल कपट किए गए हैं ।  और यह सब, जब से आक्रमणकारी विदेशी आर्यब्राम्हण भारत देश में आए हैं, तब से लेकर आजतक इनके करतूतें जारी है ।

फिर ये सबके सब संविधान और तिरंगे के प्रेमी कैसे हो गए??

बाबा साहब अंबेडकर का नाम रटने को मजबूर है BJP-RSS, जबकि मिलती नहीं है विचारधारा

मोदी सरकार अंबेडकर के 125वें जयंती वर्ष में कई कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने 26 नवंबर 2015 को बड़े पैमाने पर संविधान दिवस मनाने का ऐलान किया था। अलग-अलग मंत्रालय लेख-भाषण प्रतियोगिता के साथ समानता-दौड़ आदि का भी आयोजन किया था। सवाल उठता है कि अचानक राष्ट्रीय स्वयंसेवक और भारतीय जनता पार्टी के भीतर बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के प्रति श्रद्धा और प्रेम भाव क्यों  उमड़ा।

राष्ट्र दरअसल कल्पना का ख़ास ढंग का संगठन है। इसलिए प्रतीकों का काफ़ी महत्व होता है। जिन प्रतीकों के माध्यम से हम अपनी राष्ट्र की कल्पना को मूर्त करते हैं, उनकी जगह नए प्रतीक प्रस्तुत करके एक नई कल्पना को यथार्थ करने का प्रयास होता है। तो हम उस राजनीतिक दल के संविधान प्रेम को कैसे समझें जिसकी पितृ-संस्था, यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उस पर मात्र इसलिए अपना विश्वास जताया था जिससे उस पर गाँधी की हत्या के बाद लगा प्रतिबंध हटाया जा सके। आख़िर यही शर्त सरदार पटेल ने उसके सामने रखी थी। वरना उसका ख़्याल था कि मनुस्मृति से बेहतर संविधान क्या हो सकता है! याद रहे कि इस संगठन ने तिरंगा ध्वज को भी मानने से इनकार किया था यह कहकर कि तीन रंग अशुभ और अस्वास्थ्यकर होते हैं। इस तिरंगे के चक्र पर इस संघ और दल के एक वरिष्ठ नेता, अब मूक मार्गदर्शक लालकृष्ण आडवाणी ने यह कहकर ऐतराज़ जताया था कि यह बौद्ध धर्म का प्रतीक है। फिर ये सबके सब संविधान और तिरंगे के प्रेमी कैसे हो गए?

मोदी के विरुद्ध साज़िश ?? .. देशहित में सफल क्यों ना हो ??

अब तो हद्द हो गई .... कल तक जो कहते थे ना खाऊंगा ना खाने दूंगा - देश की तिजोरी पर कोई पंजा नहीं पड़ने दूंगा - मेरी छाती ५६ इंची - आदि आदि लम्बी लम्बी - वो आज विलापने लगे - घिसी पिटी रिकॉर्ड फिल चला मारे .... मैं गरीब का बेटा 'चायबेचनेवाला' प्रधानमंत्री बन गया - इसलिए ये बात विरोधियों को पच नहीं रही - इसलिए मेरे विरुद्ध साज़िश हो रही है .... साज़िश !!

यदि बात सही है तो - प्रश्न उठता है कि जो वर्चस्व प्राप्त सर्वोच्च पद पर सत्तासीन होने के बावजूद खुद का बचाव ना कर पा रहा हो वो देश का क्या भला करेगा - जो खुद रोने लगा हो - वो दूसरों के आंसू क्या पोंछेगा .... और जनता के साथ जो अनवरत साज़िश होती रहती है और हो रही है उसको कौन रोकेगा ??

उपरोक्त प्रश्न मैं इसलिए समक्ष में रख रहा हूँ कि यदि कोई साज़िश हो रही है - और वो भी चंद टुच्चे 'एनजीओ' के द्वारा - तो आपका 'तोता' क्या कर रहा है ?? - क्या उसे केजरीवाल ने पिंजरे में बंद कर रखा है ?? ....

और 'तोते' को छोडो - आपकी 'बस्सी मैना' क्या कर रही है - और 'कौए' 'चीलें' 'बाज़' आदि क्या कर रहे हैं - क्या जेटली सुषमा राजनाथ भी आपके विरुद्ध साज़िश में शामिल तो नहीं - वैसे भी वो बहुत धनाढ्य और आप गरीब के बेटे ?? .... या फिर कहीं अमीरज़ादे अंबानी अडानी तो पीछे नहीं पड़ गए ?? .... या फिर चालू रामदेव बाबा ने तो अलोम-विलोम चालू नहीं कर दिया ?? ....

और मोदी जी यदि आपके विरुद्ध साज़िश की बात सही तो कन्हैया के पिता द्वारा आज आपका उपहास किया है और आप पर बहुत तीखा तंज़ किया है .... गौर फरमाएं - उन्होंने कहा है - मोदी जी आप गरीब के बेटे इसलिए आपके विरुद्ध साज़िश - कन्हैया भी गरीब का बेटा - उसके विरुद्ध जो साज़िश हो रही है उसका क्या - मोदी कन्हैया के लिए कुछ बोलते क्यों नहीं - मोदी चुप क्यों है ?? .... तो जनाब है कोई जवाब ??

हाँ एक बात और .... राजनीति में तो एक पक्ष दूसरे पक्ष का विरोध करता ही है - और सत्ता प्राप्त करने का प्रयास भी .... आपने भी तो यही सब किया था - प्रजातंत्र लोकतंत्र के नाम पर - और तब ही तो आप सत्ता पर काबिज़ हुए थे .... तो अब क्या हो गया ?? .... अब आप राजनीति में है या अपने आप को किसी भजन मण्डली में होने का गुमान तो नहीं पाल बैठे हैं जहा हर कोई आपके सुर में ढोल मंजीरे ही बजाता रहेगा - 'हार'मोनियम के साथ ??

वैसे तो मुझे पूरा यकीन है कि मोदी जी आप के विरूद्ध कोई साज़िश जैसा कुछ नहीं हो रहा है - आप तो स्वयं घबरा गए हो - हार गए हो - क्योंकि आप की पोल खुल रही है - दिन-ब-दिन आप की नाकाबलियत जगजाहिर होती जा रही है ....

पर फिर भी यदि कोई साज़िश हो ही रही है तो मोदी जी आप ही बताएं कि ये साज़िश देश हित में सफल क्यों ना हो जाए ?? .... है कोई ठोस कारण ???? 

सौ-  'fb page' दमोह की अभिव्यक्ति से जुडने के लिये लिंक .... https://m.facebook.com/groups/1601054226828383?message_id=1665470817053390&_rdr

बीजेपी और मोदी के खिलाफ नारेबाजी

जेएनयू में शुरू हुए बवाल के बीच छात्र मार्च में शामिल लोग 'बीजेपी और मोदी सरकार मुर्दाबाद' के नारे लगा रहे हैं. आम आदमी पार्टी के कई नेता पहले ही जंतर-मंतर पहुंच चुके थे. लगभग एक हजार छात्रों के इस मार्च में डॉ. भीमराव अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर और रोहित वेमुला के परिवार के लोग भी शामिल हुए. प्रकाश अंबेडकर ने कहा, 'हम कन्हैया और रोहित वेमुला दोनों को न्याय दिलाने के लिए हम मार्च निकाल रहे हैं.

रोहित वेमुला मामले में नहीं हुआ न्याय

छात्रों को संबोधित करते हुए केजरीवाल ने कहा कि रोहित वेमुला मामले में न्याय नहीं हुआ. केंद्र के जिन मंत्रियों के नाम इस मामले में आए, उनसे पूछताछ तक नहीं की गई. उन्होंने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों के लिए अलग से कानून बनाने की मांग होनी चाहिए. रोहित के नाम पर कानून बने. इससे पहले जंतर मंतर पहुंचे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने बीजेपी और आरएसएस पर हमला बोलकर माहौल के सियासत का पुट भर दिया.

नाकामियां छुपा रही है मोदी सरकार

राहुल ने जंतर-मंतर पर कहा कि देशभर में छात्रों की आवाज दबाई जा रही है. आरएसएस और बीजेपी चाहती है कि देश में एक ही तरह की सोच रहे. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार सिर्फ भाषण देना जानती है. नाकामियों को छिपाने के लिए वह इसपर कोई बात ही नहीं करना चाहती. उन्होंने कहा, 'अगर आप बीजेपी और आरएसएस की बातों से सहमत नहीं होते तो वो आपको मार डालेंगे. जैसा रोहित वेमुला के साथ हुआ.'

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