बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

अब ये आरएसएस का प्लान B है.

जरूर गौर करें हर दो तीन महीने पर कहीं न कहीं से उठने वाली आरक्षण की मांग का मक़सद ही यही है कि देश में आरक्षण व्यवस्था के विरुद्ध एक फैब्रिकेटेड माहौल तैयार किया जाये,
एक पब्लिक ओपिनियन को क्रिएट किया जाये. यह सन्देश दिया जाये कि आरक्षण व्यवस्था ही मूल समस्या है न कि समाधान.
दरअसल डेमोक्रेटाइज़ेशन के प्रोसेस से सवारों का वर्चस्व टूट रहा है और सदियों से वंचित रहे वर्गों की न्यूमेरिक स्ट्रेंथ अब रिफ्लेक्ट होना शुरू हो गयी है और समय के साथ इसको अब बढ़ना ही है.
यह एक सोची समझी साजिश है जिसके तहत सरकार स्थिति को तब तक बिगड़े रखना चाहती है
जब तक जन सामान्य को दैनिक जीवन में अव्यवस्था न हो जाये, लोग रोज़ रोज़ के तमाशे [जैसा कि साबित करने की मंशा है] से त्रस्त न हो जाएं.
हमने पाटीदार और जाट, दोनों मामलों में समानता देखी है अन्यथा ऐसी कौन सी सरकार होती है जो एक तरफ लॉ एंड आर्डर के स्टेट सब्जेक्ट होने का दम भरते नहीं थकती है
और दूसरी तरफ हालत बिगड़ने पर मूक दर्शक बन जाती है.
गुजरात और हरियाणा दोनों ही जगह बीजेपी की सत्ता है और केंद्र भी इनका है तो
अब क्या कारण है कि हालत संभल नहीं रहे?
दरअसल जानबूझ के संभाले नहीं जा रहे हैं. बिहार में आरक्षण समीक्षा का कार्ड फेल हुआ है और अब ये आरएसएस का प्लान बी है. हालाँकि संवैधानिक पेचीदगियों के चलते आरक्षण से खिलवाड़ लगभग असंभव है
लेकिन जनता के मन में अविश्वास पैदा करना तो आसान ही है. सजग रहे, सतर्क रहे

क्या भविष्यमे किसान भारतीय राष्ट्रवाद को खतरा पैदा करेंगे?

रोहित वेमुला और कन्हैय्याकुमार को न्याय मिलनाही चाहिये. लेकीन अगर किसान आत्महत्या, महंगाई, पुराना-नया काला धन जैसे महत्वपूर्ण सवालोंको दबानेके लिये भाजपाद्वारा जे एन यु कांड जानबुझके उछाला गया है तो भाजपा कि इस रणनितीका सक्षम प्रतिवाद भी जरुरी है यह बात विपक्ष ठीकसे समझ ले. विदर्भ, मराठवाडा, बुंदेलखंड, तेलंगाणा और ऐसे कई इलाकेमे किसानोंकी स्थिती बेहद गंभीर है. संसद अगर इससे बेखबर रहेगी तो अंततः नुकसान भारतीय समाज का ही होगा. सच मानो तो यह मुद्दा भी भविष्य मे राष्ट्रवाद के लिये खतरा साबित हो सकताहै. आखिर किसान कबतक आत्महत्या करेगा. उसकी दुसरी पिढी अगर हथियार उठाने पर मजबूर हो गयी तो दोष तो उन सभी सरकारोंका होगा जिन्होने धर्म-जातीके अस्मिता-अहंकारवादी नकली सवाल पैदा करके तथा उनसे उलझनेका नाटक करते हुये किसान और खेतीसे जुडे सवालोंकी अनदेखी की!!! 

सौ - सुभाष वारे

विदेशी अखबारों ने मोदी को बताया तानाशाह

दुनिया के दो प्रमुख अखबारों ने मोदी सरकार को तनाशाही प्रवृत्ति का बताते हुए तीखी आलोचना की है. अखबार में बीते दिनों नई दिल्ली के पास दिखी ‘पीट..पीट कर मार डालने को आतुर मानसिकता वाली भीड़’ के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया है.
न्यूयार्क टाइम्स ने दिया आर्थिक तरक्की का हवाला
न्यूयार्क टाइम्स (एनवाईटी) ने अपने एक ओपएड में कहा है, ‘‘भारत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पैरोकार लोगों के बीच हिंसक झड़प की वेदना झेल रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हिंदू अधिकार पर इसके राजनीतिक सहयोगी इसे खामोश करने के लिए आतुर हैं.’’ इसने कहा है कि टकराव ने मोदी के शासन के बारे में गंभीर चिंताएं उठाई हैं. यह आर्थिक सुधारों पर संसद में किसी प्रगति की राह में और भी रोड़े अटका सकती है.
कन्हैया की गिरफ्तारी की चर्चा
अखबार ने एक अलग आलेख में देशद्रोह के आरोप में जेएनयू के छात्र नेता कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी के बाद दिल्ली में हुई घटनाओं का जिक्र किया है. साथ ही यह कहा है कि संदेश साफ है...उग्र राष्ट्रवाद के नाम पर हिंसा स्वीकार्य है. ‘‘यहां तक कि अदालतें भी सुरक्षित स्थान नहीं हैं. राज्य या बीजेपी को चुनौती खुद को जोखिम में डाल कर मोल लें.’’
मार्टिना नवरातिलोवा ने किया रीट्वीट
इस आलेख को टेनिस खिलाड़ी मार्टिना नवरातिलोवा ने रीट्वीट करते हुए अपनी टिप्पणी में कहा है, ‘‘भारत में देशद्रोह के लिए क्या चीजें हैं...उग्र राष्ट्रवाद आसानी से हिंसा, धौंस जमाने में तब्दील हो रहा है.’’
ल मोंड में तिरंगा और भगवा ध्वज की चर्चा
फ्रांस के प्रमुख दैनिक समाचार पत्र ‘ल मोंड’ ने एक संपादकीय में कहा है कि मोदी के सत्ता में आने के बाद से भारतीय लोकतंत्र के आकाश में बादल छाये हुए हैं. इसने कहा है कि देशद्रोह के आरोप में एक छात्र नेता और एक पूर्व प्रोफेसर की गिरफ्तारी आलोचना को चुप करने के लिए आतुर हिंदू राष्ट्रवादी सरकार की ‘तानाशाह प्रवृत्ति’ का ताजा उदाहरण है. संपादकीय में कहा गया है कि यह देखना विरोधाभासी है कि हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय ध्वज का बचाव कर रहे हैं. उन्होंने अपने भगवा झंडे को इसपर वरीयता देते हुए लंबे समय तक दूरी बनाए रखी.
अखबारों ने पीएम मोदी को दिया सलाह
न्यूयार्क टाइम्स ने कहा है कि ‘पीट..पीट कर मार डालने को आतुर मानसिकता रखने वाली भीड़’ की जिम्मेदारी मूल रूप से मोदी सरकार पर ही है. भारतीय नागरिकों के पास अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रयोग के लिए सरकारी धमकियों के प्रति नाराजगी जताने का अधिकार है. अखबार ने मोदी से अपने मंत्रियों और पार्टी को काबू करने और मौजूदा संकट को खत्म करने का सुझाव दिया है.
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ऐसा करने वालों की देशभक्ति संदिग्ध है..

संघी विचार परिवार वालों से तीन सवाल.
1. आप आंबेडकर चौक, लातूर में जबरन भगवा क्यों फहराना चाहते थे. वहां तो राष्ट्रीय झंडे के अलावा कोई झंडा नहीं होता. बाबा साहेब का भगवा से क्या लेना-देना?
2. कानून के तहत, बुजुर्ग हेड कॉन्स्टेबल ने जब आपको यह गैरकानूनी काम करने से रोका, तो उनको पीटा क्यों?
3. भगवा क्यों, राष्ट्रीय ध्वज क्यों नहीं. आपने जबरन इस बुजुर्ग के हाथ में भगवा पकड़ा कर शहर में घुमाया. राष्ट्रीय ध्वज होता, तो वे खुद शान से जिंदाबाद कहकर शहर में घूमते.

ऐसा करने वालों की देशभक्ति संदिग्ध है.

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