रविवार, 3 जनवरी 2016

आज कलम का कागज से, मै दंगा करने वाला हूँ।

आज कलम का कागज से,
मै दंगा करने वाला हूँ।

मीडिया की सच्चाई को मैं,
नंगा करने वाला हूँ।

मीडिया जिसको लोकतंत्र का,
चौंथा खंभा होना था।

खबरों की पावनता में, 
जिसको गंगा होना था।

आज वही दिखता है हमको,
वैश्या के किरदारों में।

बिकने को तैयार खड़ा है,
गली चौक बाजारों में।

दाल में काला होता है,
तुम काली दाल दिखाते हो।

सुरा सुंदरी उपहारों की,
खूब मलाई खाते हो।

गले मिले सलमान से आमिर,
ये खबरों का स्तर है।

और दिखाते इंद्राणी का,
कितने फिट का बिस्तर है।

म्यॉमार में सेना के,
साहस का खंडन करते हो।

और हमेशा दाउद का,
तुम महिमा मंडन करते हो।

लोकतंत्र की संप्रभुता पर,
तुमने कैसा मारा चाटा है।

सबसे ज्यादा तुमने हिन्दू ,
मुसलमान को बाँटा है।   

दिल्ली में जब पापी वहशी,
चीरहरण मे लगे रहे।

तुम एश्श्वर्या की बेटी के,
नामकरण मे लगे रहे।

'दिल से' दुनिया समझ रही है,
खेल ये बेहद गंदा है।

मीडिया हाउस और नही कुछ,
ब्लैकमेलिंग का धंधा है।

गूंगे की आवाज बनो,
अंधे की लाठी हो जाओ।

सत्य लिखो निष्पक्ष लिखो,
और फिर से जिंदा हो जाओ ।।
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