सोमवार, 7 मार्च 2016

देश प्रेम व देश भक्ति कुत्तो की व्यवस्था है क्या?

जिस प्रकार कुत्ते आदि जंगली जानवर अपने मूत से अपने देश की निशानदेही करते है । क्या उसी प्रकार इंसानों ने बोर्डर नही बना रखे है? जिस प्रकार उस मूत बोर्डर के अंदर दूसरा कुत्ता आने पर उसी कुत्ते के बाप भाई माता नातेदार आदि गिरा गिरा के मारते व नोंचते। जरा भी ये नही सोचते क़ि ये मेरे जैसा दिखने वाला रिश्तेदार है मेरा। वैसे ही इंसान भी उस फर्जी बोर्डर रूपी व्यवस्था के आप पास किसी को भी फटकने नही देता है इसी लिए हर वक्त गोली वारी करने को आतुर रहते हुए एक इंसान दूसरे इंसान की जान लेता व देता है। लेकिन उस हत्या को हत्या न कहके शहीद या शहादत तथा उस कुकर्म को देशभक्ति व देशप्रेम बोला जाता है। उसपर यदि कोई इंसानियत की बात करे तो वो देशद्रोही कहलाता है। (क्या तथागत बुद्ध, अंगुलिमाल हत्यारे को हिंसा से विरत करने वाले पहले देशद्रोही नही थे? ) ऐसा कहके अपने पाप पर पर्दा डाला जाता है। जिस क्षेत्र की रखवाली करते हुए जान ली व दी जाती है उसी को "देश" बोला जाता है। शायद कुत्ते भी अपने मूत्र देश की रखवाली करने वालो को देश प्रेमी व शहीद ही बोलते होंगे। जब कोई उनका ही साथी इस पर सवाल उठाता होगा तो उसे भी दूसरे संघी कुत्ते देशद्रोही बोलते होंगे।। शायद गीता का उपदेश उस वक्त भूल जाते होंगे क़ि न कुछ तेरा न कुछ मेरा ये दुनिया रैन बसेरा आदि। अर्थात एक इंसान अगर दूसरे इंसान के साथ इंसानियत की बात व व्यवहार करे तो वो देशद्रोही कहा जाता है। ये बात कुत्तो के खानदान मे तो ठीक समझी जा सकती है क्यों क़ि वो कुत्ते है। लेकिन संघी मनुमानुशों ने अपनी मूत्र देश की कोई मूत्र सीमा भी नही बनाई , फिर ये कैसा देश व कैसा देश प्रेम उनका? क्या ये देश प्रेम व देश भक्ति कुत्तो की ,कुत्तो के लिए व कुत्तो के द्वारा निर्मित व्यवस्था नही है? फिर चाहे वो संघी कुत्ते ही क्यों न हो।
सौ - डॉ बिनोद दोहरे

तो ये पत्थर की मूर्ति क्या दे सकती हैं..

एक नई नवेली दुल्हन जब ससुराल में आई तो
उसकी सास बोली :
बींदणी कल माता के मन्दिर में चलना है।
बहू ने पूछा :
सासु माँ एक तो ' माँ ' जिसने मुझे जन्म दिया
और एक ' आप ' हो
और कोनसी माँ है ?
सास बडी खुश हुई कि मेरी बहू तो बहुत सीधी है ।
सास ने कहा - बेटा पास के मन्दिर में दुर्गा माता है
सब औरतें
जायेंगी हम भी चलेंगे ।
सुबह होने पर दोनों एक साथ मन्दिर जाती है ।
आगे सास पीछे बहू ।
जैसे ही मन्दिर आया तो बहू ने मन्दिर में गाय की
मूर्ति को देखकर
कहा :
माँ जी देखो ये गाय का बछड़ा दूध पी रहा है ,
मैं बाल्टी लाती
हूँ और दूध निकालते है ।
सास ने अपने सिर पर हाथ पीटा कि बहू तो
" पागल " है और
बोली
बेटा ये स्टेच्यू है और ये दूध नही दे
सकती।
चलो आगे।
मन्दिर में जैसे ही प्रवेश किया तो एक शेर की
मूर्ति दिखाई दी ।
फिर बहू ने कहा - माँ आगे मत जाओ ये शेर खा
जायेगा
सास को चिंता हुई की मेरे बेटे का तो भाग्य फूट
गया ।
और बोली - बेटा पत्थर का शेर कैसे खायेगा ?
चलो अंदर चलो मन्दिर में, और सास बोली -
बेटा ये माता है और इससे मांग लो , यह माता
तुम्हारी मांग पूरी करेंगी ।
बहू ने कहा -
माँ ये तो पत्थर की है ये क्या दे सकती
है ? ,
जब पत्थर की गाय दूध नही दे
सकती ?
पत्थर का बछड़ा दूध पी नही सकता ?
पत्थर का शेर खा नही सकता ?
तो ये पत्थर की मूर्ति क्या दे सकती है ?
अगर कोई दे सकती है तो आप ......... है
" आप मुझे आशीर्वाद दीजिये " ।
तभी सास की आँखे खुली !
वो बहू पढ़ी लिखी थी,
तार्किक थी, जागरूक थी ,
तर्क और विवेक के सहारे बहु ने सास को
जाग्रत कर दिया !
अगर ईश्वर की प्राप्ति करनी है तो पहले
असहायों , जरुरतमंदों , गरीबो की सेवा करो
परिवार , समाज में लोगो की मदद करे ।
" मानव सेवा ही माधव सेवा है " ।
प्रत्येक मनुष्य में आत्म स्वरुप ईश्वर स्वयं
विराजित है ।
इनमे ही प्रभु के दर्शन करे ।
बाकी
मंदिर , मस्जित , गुरुद्वारे तो मानसिक शांति
के केंद्र हैं
ना कि ईश्वर प्राप्ति के स्थान

भीम की औलाद हैं हम

भीम   की औलाद  हैं  हम।
इसीलिए फौलाद   हैं   हम।।

है  संघर्ष  हमारा   मूलमन्त्र,
इसीलिए  आबाद  हैं   हम।।

बाबा  साहब  हक  दे  गए,
इसीलिए  आजाद  हैं  हम।।.

संगठित  तो  नहीं  हो सके,
बहुत  बड़ी  तादाद  हैं हम।।

जय  भीम  है हर जुबां पर,
बुद्ध  का  शंखनाद  हैं हम।।

सिल्ला' के हौंसले बुलंद हैं,
अन्याय के प्रतिवाद हैं हम।।

सौ -विनोद सिल्ला

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