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शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016
ऊल्टी खोपडी
क्या मुसलमानों और पिछडो को अपने सत्यानाश की जानकारी है ??
भारत विभाजन के वक्त मूसलमानोंऔर पिछडो का
सत्यानाश कैसे हुआ?
.
(१) भारत से पाकिस्तान जाते समय मुसलमानों ने
अपने सात
लाख घर खाली किये थे| वह सब घर ब्राह्मण, बिनया,
क्षञिय
को सरकार ने अलॉर्ट (देना) कर दिये| लेकिन पिछडे
वर्ग के
मुसलमानों को नहीं दिया. एससी, एसटी, ओबीसी के
लोगों
की बात तो छो़डो|
(२) मुसलमान अपनी ७० लाख एक़ड जमीन छो़डकर
पाकिस्तान
चले गये वह सारी जमीन सरकारने ब्राह्मण, क्षञिय,
वैश्य को
अलॉट कर दी|
(३) पाकिस्तान से जो ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य
भारत आये थे
उनको सरकारने ६० हजार नौकरीया दी गई थी और
एससी,
एसटी, ओबीसी के लोग आये थे उनको सिर्फ २०४
नौकरीयॉं
दी|
(४) पाकिस्तान से जो ६० हजार ब्राह्मण, क्षञिय,
वैश्य लोग
आये उनको डेव्हलप ऐरिया में बसाया गया जैसे
दिल्ली, मुंबई और
विकसित शहर लेकिन जो एससी, एसटी, ओबीसी के
लोग आये
उन्हें सरकारने अनडेव्हलप ऐरिया में बसाया जैसे
जंगलो और
रेगीस्थान..
(५) मोहनदास गांधी ने ५५ करो़ड रुपये पाकिस्तान
को दिये इस
वजह से गांधी की हत्या हुई ऐसे कहने वाले लोगों ने
पाकिस्तान
से आये ब्राह्मण क्षञिय, वैश्य को भारत में बसाने के
लिए
सरकार ने ९१ करो़ड रुपये लगाऐ इसकी आज तक
चर्चा तक नहीं
हुई|
.
क्या मुसलमानों और पिछडो को अपने सत्यानाश की
जानकारी है ??
भारत में कुछ मन्दिरों की एक महिना की कमाई के ये आंकड़े आपको सोचने को मजबूर कर देंगे
ये आंकड़े आपको सोचने को मजबूर कर देंगे-
1. तिरुपति बालाजी 1 हजार 325 करोड़
2. वैष्णौंदेवी 400 करोड़
3. रामकृष्ण मिशन 200 करोड़
4. जगनाथपुरी 160 करोड़
5. शिर्डी सांईबाबा 100 करोड़
6. द्वारकाधीश 50 करोड़
7. सिद्धी विनायक 27 करोड़
8. वैधनाथ धाम देवगढ 40 करोड़
9. अंबाजी गुजरात 40 करोड़
10. त्रावणकोर 35 करोड़
11. अयोध्या 140 करोड़
12. काली माता मन्दिर कोलकाता 250 करोड़
13. पदमनाभन 5 करोड़
14. सालासर बालाजी 300 करोड़
इसके अलावा भारत के छोटे बड़े मन्दिरों की सालानाआय 280 लाख करोड़ और भारत का कुल बजट 15 लाख करोड़।
अगर हरआदमी इन मन्दिरों में चढावा ना चढाए और किसी गरीब असहाय की मदद करे तो भारत से गरीबी महज तीन साल हट सकती है।
आज़ादी आज़ादी
हमको मोदी के भाषण से चाहिए आज़ादी ...
हमको आरएसएस के हस्तक्षेप से चाहिए आज़ादी
हमको फोटोशॉप वाले नकली फोटो से चाहिए आज़ादी
हमको थूक कर चाटने वालो से चाहिए आज़ादी
हमको मोदी से अच्छे दिन से चाहिए आज़ादी
हमको 12th फ़ैल शिक्षामंत्री से चाहिए आज़ादी
हमको भाजपा के व्यापाम घौटाले से चाहिए आज़ादी
हमको राम मंदिर वाली राजनीती से चाहिए आज़ादी
हमको गद्दार पीडीपी के साथियो से चाहिए आज़ादी
हमको गिरिराज के मूर्खतापूर्ण वयानो से चाहिए आज़ादी
हमको साध्वी के मुह के कीड़ो से से चाहिए आज़ादी
हमको संघ की शाखाओं से चाहिए आज़ादी
हमको फेसबुकिये गालीबाज़ अन्धेभक्तो से चाहिए आज़ादी
हमको देशभक्ति का सार्टिफिकेट देने वालो से चाहिए आज़ादी
हमको मोदी के झूठे वादों से चाहिए आज़ादी
हमको गोडसे को पूजने वालो से चाहिए आज़ादी
हमको हिंदू धर्म का अपमान करनेवाले हिंदु्त्वा से चाहिए आज़ादी
हमको राम के नाम पे हो रहे रावण राज से चाहिए आज़ादी
हमको धर्म के नाम पे चलरहे भगवा आतंकवाद से चाहिए आज़ादी
...........
आज़ादी आज़ादी
.........
ले कर रहेंगे आज़ादी
आज अपने देशवासीयो का सौभाग्य है
जो मोदी जैसे प्रधानमंत्री और जेटली जैसे वितमंत्री मिले... आज डोलर का भाव 36 महिने की उचाइ पर है... एक डोलर का अभी इस समय 68.86 रू मिल रहा है...
जरा सोचो, अगर आपके पास एक डोलर हो तो आप को 68.86 रू मिलेगा... जो कि मोदीजी ने जिस दिन शपथ ली थी उस दिन महज 58 रू था... ये मोदीजी की दिन रात की गाढी महेनत का नतीजा है... इसके लिये 56" का सीना चाहिए...
देशभक्ति की एक और मिसाल ले लो... आज लगातार 14 महिने से मोदीसरकार के प्रयत्नो से एक्सपोर्ट कम होता जा रहा है... ये होती है देशभक्ति... भला हम हमारे यहा बने उत्पाद विदेशो को क्यों दे...??? हमने उत्पादन किया... इस पर हमारे देश का अधिकार है... विदेशी अब हमारे उत्पाद को तरसेंगे...
और सुनो नौकरीया भी कम हो रही है... अरे भाइ हमारे देश के नौजवान नौकर बनेंगे ???... मोदीजी चाहते है कि अब कोइ नौकर नही रहेगा... सब मालिक बनेंगे... जब नौकरी ही नही रहेगी तो अपने आप ही सब कुछ न कुछ धंधा करेंगे... ये है दीर्घ द्रष्टि मोदीजी की...
लेक्नि कुछ देशद्रोही, गद्दार लोग इसे समज नही पा रहे... और खाली पीली विलाप कर रहे है... जय मोदी सरकार... (मेरा भी एक देशभक्त का प्रमाणपत्र बनता है अब तो...!!!)
जेएनयू के बहाने देशभक्ति और देशद्रोह पर छिड़ी इस पूरी बहस के अलग-अलग पक्ष
जो लोग यह मान रहे हैं कि महज दस लड़कों के कुछ नासमझी भरे नारों के लिए जेएनयू को बदनाम किया जा रहा है, वे दरअसल एक भारी भूल कर रहे हैं। यह जेएनयू से ज्यादा जेएनयू की अवधारणा है जो बीजेपी, संघ परिवार और दक्षिणपंथी विचारधारा को स्वीकार्य नहीं है।
जेएनयू के बहाने देशभक्ति और देशद्रोह पर छिड़ी इस पूरी बहस के अलग-अलग पक्षों को देखें तो यह बात साफ़ तौर पर समझ में आ जाएगी। मसलन जो लोग जेएनयू के नारों का विरोध कर रहे हैं, वे हैदराबाद यूनिवर्सिटी में रोहित वेमुला की ख़ुदकुशी से भी आंख मिलाने को तैयार नहीं हैं। जो लोग जेएनयू को देशद्रोहियों का अड्डा बता रहे हैं, वे मूलतः आरक्षण विरोधी और उदारीकरण के समर्थक तत्व हैं। जो लोग मानते हैं कि जेएनयू आज़ादी के नाम पर अराजकता फैला रहा है, वे स्त्री की बराबरी और आज़ादी के भी ख़िलाफ़ खड़े लोग हैं।
ये वही लोग हैं जो कश्मीर समस्या और माओवाद के संकट को किसी आंतरिक परिस्थिति की तरह देखने को तैयार नहीं हैं, बल्कि यह चाहते हैं कि इनका उस तरह दमन कर दिया जाए जैसे आक्रांता सेनाएं किसी दूसरे देश के नागरिकों का करती हैं। यही वे लोग हैं जो जातिवाद को गलत बताते हैं लेकिन अपनी जाति के बाहर जाकर शादी करने को तैयार नहीं होते और अख़बारों में बिल्कुल जातिगत पहचानों वाले विज्ञापन देते हैं। ये वही लोग हैं जिन्हें दलितों का, पिछड़ों का, अल्पसंख्यकों का और स्त्रियों का आगे बढ़ना नहीं सुहाता। ये वही लोग हैं जो सरकारी या केंद्रीय विश्वविद्यालयों के सामाजिक माहौल में नहीं जाते और निजी तकनीकी संस्थानों की मूलतः कारोबारी शिक्षा वाली व्यवस्था को सबसे आदर्श मानते हैं।
यही वे लोग हैं जो मानते हैं कि विश्वविद्यालयों में बस कोर्स पूरा करना चाहिए और डिग्री लेकर एक अच्छी नौकरी करनी चाहिए, बहस नहीं करनी चाहिए और राजनीति तो बिल्कुल नहीं। यही लोग हुसैन की कलाकृतियां जलाते हैं, हबीब तनवीर के नाटकों में बाधा डालते हैं और लेखकों के विरोध को राजनीतिक साज़िश की तरह देखते हैं। फिर यही वे लोग हैं जो अयोध्या में एक भव्य राम मंदिर चाहते हैं, जैश-लश्कर से लेकर आईएस-अल क़ायदा तक की मिसालें देते हुए साबित करते हैं कि मुसलमान आतंकवादी हैं और शिकायत करते हैं कि इसी मुल्क में बोलने की इतनी आज़ादी है कि लोग देश और धर्म की भी आलोचना कर बैठते हैं।
दूसरी तरफ जो लोग रोहित वेमुला के अकेलेपन और उसकी बिल्कुल प्राणांतक उदासी में साझा करते हैं, वही कन्हैया और उसके साथ खड़े होने का दम दिखाते हैं। जो लोग इस पूरी व्यवस्था में हाशिए पर हैं, जो चंपू पूंजीवाद और अलग-अलग सत्ताओं के गठजोड़ से बनी एक बेईमान और अन्यायपूर्ण राजनीतिक-आर्थिक व्यवस्था के शिकार हैं, वे देश के नाम पर ठगे जाने को तैयार नहीं हैं। इत्तिफाक से यही वे लोग हैं जो नई बहसों, नए चलनों, नए राजनीतिक प्रयोगों और नई क्रांतियों के वाहक हैं और अपने-अपने संस्थानों और विश्वविद्यालयों में अति तक जा सकने वाली बहसें करते रह सकते हैं।
यही वे लोग हैं जो कलबुर्गी, पंसारे और दाभोलकर के मारे जाने का विरोध करते हैं, इसके लिए प्रदर्शन करते हैं और अपने पुरस्कार लौटाते हैं। अगर ध्यान से देखें तो बंगाल से महाराष्ट्र तक, छत्तीसगढ़ से तेलंगाना तक और गुजरात से कर्नाटक तक जो लोग कहीं मेधा पाटकर की बांध विरोधी लड़ाई में शामिल हैं, कहीं उदयकुमार के साथ ऐटमी कारख़ानों का विरोध कर रहे हैं, कहीं सोनी सोरी के साथ हुए अत्याचार को उजागर कर रहे हैं, कहीं अख़लाक के मारे जाने का मातम मना रहे हैं, कहीं गैंगरेप की शिकार किसी लड़की के हक़ में आंदोलन कर रहे हैं और कहीं मानवाधिकार की किसी दूसरी लड़ाई के सिपाही बने हुए हैं, वही हैदराबाद से जेएनयू तक पसरे हुए हैं। ये एक अलग सा भारत है- बहुत सारे रंगों से भरा हुआ, बहुत सारे विश्वासों से लैस, बहुत सारी बहसें करता है, बहुत सारे अभावों के बीच गुज़रता हुआ, कहीं पिटता हुआ, कहीं जेल जाता हुआ- जो इस देश पर शासन कर रही सरकारों को समझ में नहीं आता है। वे इस भारत को कुचलना चाहती हैं, क्योंकि वह असहमति जताता है, सवाल पूछता है, नारे लगाता है और कभी-कभार अपनी हताशा या अपने गुस्से में अपने अलग होने की बात भी कह डालता है।
इसके लिये हम ही जिम्मदार है..!
समानता, स्वतंत्रता, और बंधुत्व, इस देशमॆ रहनेवालो के हमेशा आदर्श स्वप्न रहे है और उसे प्राप्त करने के लिये अनेक राजनीतिक व्यवस्थाये देश मॆ आजमाई गयी है. आज देश की किसी भी राजकीय पार्टी के पास सिद्धांत नही है. सब के सब सत्ता के भूखे है. इसके लिये हम ही जिम्मदार है..! क्योंकि इन सभी राजकीय पार्टियों को सत्ता और ताक़त हमने ही दिये है. कभी भीड़ बनके, कभी उनकी प्रशंसा करके, तॊ कभी उनके कार्यों और विचारो को जाने अनजाने मॆ समर्थन दिया है, या विरोध करने के लिये निकल पडे है. इन्ही से उनके पास सत्ता और बेहिसाब दौलत की ताक़त आती है. जिससे वो जिसको चाहे खरीद सकते है, बेच सकते है..और वो भी सब्जियों के दाम पर..! आप की भी कोई कीमत जरूर होगी..! कितनी है, यह आपको ज़रूर मालूम होगा..!
यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं हैं
जेएनयू की घटना को जिस तरह से टीवी चैनलों में कवर किया गया है उसे आप अपने अपने दल की पसंद की हिसाब से मत देखिये। उसे आप समाज और संतुलित समझ की प्रक्रिया के हिसाब से देखिये। क्या आप घर में इसी तरह से चिल्ला कर अपनी पत्नी से बात करते हैं। क्या आपके पिता इसी तरह से आपकी मां पर चीखते हैं। क्या आपने अपनी बहनों पर इसी तरह से चीखा है। ऐसा क्यों हैं कि एंकरों का चीखना बिल्कुल ऐसा ही लगता है। प्रवक्ता भी एंकरों की तरह धमका रहे हैं। सवाल कहीं छूट जाता है। जवाब की किसी को परवाह नहीं होती। मारो मारो, पकड़ो पकड़ो की आवाज़ आने लगती है। एक दो बार मैं भी गुस्साया हूं। चीखा हूं और चिल्लाया हूं। रात भर नींद नहीं आई। तनाव से आंखें तनी रही। अक्सर सोचता हूं कि हमारी बिरादरी के लोग कैसे चीख लेते हैं। चिल्ला लेते हैं। अगर चीखने चिल्लाने से जवाबदेही तय होती तो रोज़ प्रधानमंत्री को चीखना चाहिए। रोज़ सेनाध्यक्ष को टीवी पर आकर चीखना चाहिए। हर किसी को हर किसी पर चीखना चाहिए। क्या टीवी को हम इतनी छूट देंगे कि वो हमें बताने की जगह धमकाने लगे। हममें से कुछ को छांट कर भीड़ बनाने लगे और उस भीड़ को ललकारने लगे कि जाओ उसे खींच कर मार दो। वो गद्दार है। देशद्रोही है। एंकर क्या है। जो भीड़ को उकसाता हो, भीड़ बनाता हो वो क्या है। पूरी दुनिया में चीखने वाले एंकरों की पूछ बढ़ती जा रही है। आपको लगता है कि आपके बदले चीख कर वो ठीक कर रहा है। दरअसल वो ठीक नहीं कर रहा है।
कई प्रवक्ता गाली देते हैं। मार देने की बात करते हैं। गोली मार देने की बात करते हैं। ये इसलिए करते हैं कि आप डर जाएं। आप बिना सवाल किये उनसे सहमत हो जाएं। हमारा टीवी अब आए दिन करने लगा है। एंकर रोज़ भाषण झाड़ रहे हैं। जैसे मैं आज झाड़ रहा हूं। वो देशभक्ति के प्रवक्ता हो गए हैं। हर बात को देशभक्ति और गद्दारी के चश्मे से देखा जा रहा है। सैनिकों की शहादत का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है। उनके बलिदान के नाम पर किसी को भी गद्दार ठहराया जा रहा है। इसी देश में जंतर मंतर पर सैनिकों के कपड़े फाड़ दिये गए। उनके मेडल खींचे गए। उन सैनिकों में भी कोई युद्ध में घायल है। किसी ने अपने शरीर का हिस्सा गंवाया है। कौन जाता है उनके आंसू पोंछने।
शहादत सर्वोच्च है लेकिन क्या शहादत का राजनीतिक इस्तेमाल भी सर्वोच्च है। कश्मीर में रोज़ाना भारत विरोधी नारे लगते हैं। आज के इंडियन एक्सप्रेस में किसी पुलिस अधिकारी ने कहा है कि हम रोज़ गिरफ्तार करने लगें तो कितनों को गिरफ्तार करेंगे। बताना चाहिए कि कश्मीर में पिछले एक साल में पीडीपी बीजेपी सरकार ने क्या भारत विरोधी नारे लगाने वालों को गिरफ्तार किया है। हां तो उनकी संख्या क्या है। वहां तो आए दिन कोई पाकिस्तान के झंडे दिखा देता है, कोई आतंकवादी संगठन आईएस के भी।
कश्मीर की समस्या का भारत के अन्य हिस्सों में रह रहे मुसलमानों से क्या लेना देना है। कोई लेना देना नहीं है। कश्मीर की समस्या इस्लाम की समस्या नहीं है। कश्मीर की समस्या की अपनी जटिलता है। उसे सरकारों पर छोड़ देना चाहिए। पीडीपी अफज़ल गुरु को शहीद मानती है। पीडीपी ने अभी तक नहीं कहा कि अफज़ल गुरु वही है जो बीजेपी कहती है यानी आतंकवादी है। इसके बाद भी बीजेपी पीडीपी को अपनी सरकार का मुखिया चुनती है। यह भी दुखद है कि इस बेहतरीन राजनीतिक प्रयोग को जेएनयू में कुछ छात्रों को आतंकवादी बताने के नाम पर कमतर बताया जा रहा है। बीजेपी ने कश्मीर में जो किया वो एक शानदार राजनीतिक प्रयोग है। इतिहास प्रधानमंत्री मोदी को इसके लिए अच्छी जगह देगा। हां उसके लिए बीजेपी ने अपने राजनीतिक सिद्धांतों को कुछ समय के लिए छोड़ा उसे लेकर सवाल होते रहेंगे। अफज़ल गुरु अगर जेएनयू में आतंकवादी है तो श्रीनगर में क्या है। इन सब जटिल मसलों को हम हां या ना कि शक्ल में बहस करेंगे तो तर्कशील समाज नहीं रह जाएंगे। एक भीड़ बन कर रह जाएंगे। यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।
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