रविवार, 8 मई 2016

स्वतंत्र भारत का प्रथम आतंकवादी

नाथूराम गोडसे.....
भारत को एक लंबे संघर्ष और असीमित बलिदान के बाद 15 अगस्त-1947 को आज़ादी मिली. अभी आजादी का जशन पूरी तरह मनाया भी नही गया था के हमारा राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या 30 जनवरी 1948 को ब्राह्मण नाथूराम गोडसे ने गोली मार कर कर दि.इस तरह स्वतंत्र भारत का ए पहला आतंकवादी घटना था और ब्राह्मण नाथूराम गोडसे स्वतंत्र भारत का प्रथम आतंकवादी था.बहुत आश्चर्य होता है जब आज ब्राह्मण नाथुराम गोडसे को कुछ संप्रदायिक पार्टीयो द्वारा गोडसे को एक राष्‍ट्रीए हीरो बनाने की कोशिश चल रही है. इस आतंकवादी को पैदा करने वाला ब्राह्मण संगठन आर .एस . एस था. इस संगठन की बुनियाद 1925 मे विजयदशमी के दिन ब्राह्मण केशव हेडगोवार ने रखी जिस का मक़सद हिन्दुवाद की आड मे ब्राह्मणवाद के कॉन्सेप्ट को आयेज बडाना था. इस ब्राह्मण संगठन आर एस एस ने आजादी की लड़ाई मे कभी भी हिस्सा नही लिया बल्के बहुत से दस्तावेज़ से साबित होता है के संघ अंग्रेज़ो की चापलूसी मे लगा रता था. संघ ने हमेशा भगवा झंडे को तरजीह दी कभी भी ए लोग राष्ट्रिये झंडे तिरंगे को सल्यूट नही किया.
सत्य- अहिंसा के सबसे बड़े प्रवर्तक महात्मा गाँधी की हत्या 30 जनवरी 1948 को कर दी गई थी, लेकिन उनकी हत्या की साजिश रचने वालों ने इससे कुछ दिन पहले भी 20 जनवरी को एक प्रार्थना सभा में बापू को मारने का प्रयास किया था हालाँकि वे इसमें असफल रहे। बहरहाल, अगर 20 जनवरी के हादसे को गंभीरता से लिया गया होता तो शयेद बापू बच गये होते. गाँधी जी के हत्या का कारण पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने के लिये सरकार को बाध्य करना और उन का मुस्लिमो के प्रति प्रेम बताया जाता है. लेकिन गांधीजी के पौत्र तुषार गाँधी बापू की हत्या का यह करण नही मानते, उन्हो ने अपनी पुस्तक "लेट्स किल गाँधी” मे लिखा है के गाँधीजी की हत्या पूर्वनियोजित थी और ब्राह्मण का एक समुदाय जो हिन्दू राष्ट्र की आड मे ब्राह्मण राष्ट्र बनाना चाहता था, उसी ने हत्या करवाया क्यो के वे गाँधीजी को अपने राह मे रोड़ा समझती थी.
Why Godse killed Gandhi पुस्तक मे व. टी. राजशेखर लिखते है के गाँधी जी की हत्या के बारे मे ब्राह्मण संगठन संघ को पहले से ही मालूम था, जैसे ही हत्या की खबर मिली मिन्टो मे ही पूरे भारत मे मिठाये ब्राह्मण संगठन संघ के द्वारा बांटी गयी. जिस से लोग नाराज़ हो कर महाराष्ट्र और कर्नाटक मे लोगो ने बहुत से ब्राह्मणो के घर मे आग लगा दी. गाँधीजी हत्या का समय ब्राह्मण गोवालकर मद्रास मे ब्राह्मणो के एक सभा मे उपस्थित थे, उस के बाद वे नागपुर वापस आ गये, मगर 1 फरवरी 1948 को रात्रि मे उन्हे गाँधीजी की हत्या मे शामिल होने पे गिरफ्तार कर लिया गया. 4 फरवरी को ब्राह्मण संगठन संघ पर पूरे देश मे प्रतिबंध लगा दिया गया. गृह मंत्री सरदार पटेल 18 जुलाइ-1948 के एक पत्र मे श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लिखा के हमारे रिपोर्ट के अनुसार संघ और हिन्दू महासभा खासतौर से संघ ने देश मे घ्रणा का ऐसा माहौल बनाया जिस के करण गाँधीजी की हत्या हो गयी. 11 सितंबेर 1948 को एक और पत्र मे पटेल ने लिखा के जिस तरह गाँधी जी के हत्या के बाद संघ वालो ने खुशी जाहिर की और मिठायी बांटी जिस के करण लोगो मे नाराजगी बड गयी, इसी कारण संघ पर प्रतिबंध लगाना पड़ा.
अब हम आप को गाँधी जी की हत्या के पीछे का एक और सच बताने जा रहा हु जो के ब्राह्मण संगठन संघ की साम्प्रदायिक जेहनीयात मे पैदा हुआ था, क्यो के गाँधीजी की हत्या पूर्वनियोजित थी इस लिये ब्राह्मण नाथूराम गोडसे का बंगलोर के एक हॉस्पिटल मे खतना -(Circumcision कराया गया ताके मारने वाला मुसलमान प्रतीत हो सके, जिस के कारण जब ए खबर फैले गी तो मुसलमानो का क़त्लेआम शुरु हो जाये गा, मगर किस्मत का खेल देखिये के जैसे ही गाँधीजी को ब्राह्मण नाथूराम गोडसे ने गोली मारी वहा पे एक मौजूद आदमी ने कहा के ए नाथु तुम ने ए क्या कर दिया?. हत्या के कुछ देर बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ऑल इंडिया रेडियो पे आये और उन्हो ने एलान किया के ‘बहुत अफसोस के साथ कहना पड रहा है के आज एक पागल हिन्दू ने गाँधी जी की हत्या कर दी.'
अब आप स्वंय देखे के आजादी के पहले और बाद मे ब्राह्मण संगठन संघ ने सिर्फ देश के खिलाफ ही काम किया है, और उन के बहुत से सदस्यो ने भी राष्ट्र के लिये काम नही किया है. इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहेगे के ब्राह्मण संगठन संघ के सदस्य ब्राह्मण अटल बिहारी बाजपायी जो के अंग्रेज़ो से लिखित माफी भी मांग चुके है और वो पत्र आउटलुक मे भी प्रकाशित हो चुका है भारत के प्रधानमंत्री बी बन चुके है. इस लिये हम कह सकते है के ब्राह्मण नाथुरम गोडसे स्वतंत्र भारत का पहला आतंकवादी था और ब्राह्मण संगठन संघ आतंकवाद पैदा करने वाला प्रथम संगठन था.

"सकारात्मक सोच ही आदमी को "आदमी" बनाती है.

एक राजा के पास कई हाथी थे, लेकिन
एक हाथी बहुत शक्तिशाली था, बहुत आज्ञाकारी, unless
समझदार व युद्ध-कौशल में निपुण था।
बहुत से युद्धों में वह भेजा गया था
और वह राजा को विजय दिलाकर वापस लौटा था,
इसलिए वह महाराज का सबसे प्रिय हाथी था।
समय गुजरता गया  ...और एक समय ऐसा भी आया, जब वह वृद्ध दिखने लगा।

                    
अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर पाता था।
इसलिए अब राजा उसे युद्ध क्षेत्र में भी नहीं भेजते थे।

एक दिन वह सरोवर में जल पीने के लिए गया, लेकिन वहीं कीचड़ में उसका पैर धँस गया और फिर धँसता ही चला गया।

उस हाथी ने बहुत कोशिश की, लेकिन वह उस कीचड़ से स्वयं को नहीं निकाल पाया।

उसकी चिंघाड़ने की आवाज से लोगों को यह पता चल गया कि वह हाथी संकट में है।

हाथी के फँसने का समाचार राजा तक भी पहुँचा।

राजा समेत सभी लोग हाथी के आसपास इक्कठा हो गए और विभिन्न प्रकार के शारीरिक प्रयत्न उसे निकालने के लिए करने लगे।

जब बहुत देर तक प्रयास करने के उपरांत कोई मार्ग नहीं निकला तो राजा ने अपने सबसे अनुभवी मंत्री को बुलवाया।

मंत्री ने आकर घटनास्थल का निरीक्षण किया और फिर राजा को सुझाव दिया कि सरोवर के चारों और युद्ध के नगाड़े बजाए जाएँ।

सुनने वालोँ को विचित्र लगा कि भला नगाड़े बजाने से वह फँसा हुआ हाथी बाहर कैसे निकलेगा, जो अनेक व्यक्तियों के शारीरिक प्रयत्न से बाहर निकल नहीं पाया।

आश्चर्यजनक रूप से जैसे ही युद्ध के नगाड़े बजने प्रारंभ हुए, वैसे ही उस मृतप्राय हाथी के हाव-भाव में परिवर्तन आने लगा।

पहले तो वह धीरे-धीरे करके खड़ा हुआ और फिर सबको हतप्रभ करते हुए स्वयं ही कीचड़ से बाहर निकल आया।

अब मंत्री ने सबको स्पष्ट किया कि हाथी की शारीरिक क्षमता में कमी नहीं थी, आवश्यकता मात्र उसके अंदर उत्साह के संचार करने की थी।

हाथी की इस कहानी से यह स्पष्ट होता है कि यदि हमारे मन में एक बार उत्साह – उमंग जाग जाए तो फिर हमें कार्य करने की ऊर्जा स्वतः ही मिलने लगती है और कार्य के प्रति उत्साह का मनुष्य की उम्र से कोई संबंध नहीं रह जाता।

जीवन में उत्साह बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्य सकारात्मक चिंतन बनाए रखे और निराशा को हावी न होने दे।

कभी – कभी निरंतर मिलने वाली असफलताओं से व्यक्ति यह मान लेता है कि अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर सकता, लेकिन यह पूर्ण सच नहीं है.

Think positively.
"सकारात्मक सोच ही आदमी को "आदमी" बनाती है....उसे अपनी मंजील तक ले जाती है
 

"भारत" कभी भी 'हिंदूस्थान' नही था ।

( Analysis of हिंदु:-
परशियन डिक्शनरी में हिंदू शब्द का अर्थ
हिनदू = गुलाम, चोर, गंदा ,काला.
हिंदू यह शब्द दो शब्द का बना नही बल्कि तिन शब्द से {हि+न+दू} ऐसा है । उसका अपभ्रष होकर दो शब्द हिंदू ऐसा बन गया है .
< दयानंद सरस्वती स्वयं १८७५ को स्वीकार करते है और उनके "सत्यार्त प्रकाश" इस ग्रंथ में 'हिंदू मुग़ल द्वारा दी हुई गाली है ' ऐसा उल्लेख मिलता है ! उन्होने तो हिंदू समाज स्थापना न करते हुए "आर्य समाज" की स्थापना की.
बाद में मुग़लों ने ही हिंदू को 'हिंदूस्थान' बना दिया और मुग़लों से मिले हुए बामनों ने इस शब्द का स्वीकार किया जो खुद को बामन समझते है हिंदू नही .
( Analysis of हिंदुस्थान :-
हिन = तुच्छ,गंदा
दून= लोक, प्रजा, जनता..
स्थान)=
"भारत" कभी भी 'हिंदूस्थान' नही था ।
इ.स १२ वी सदी के पहले हिंदू शब्द किसी भी ग्रंथ में नही । इसलिए नीचे कुछ काव्य ग्रंथ के नाम दिये है
(ब्राह्मणी ग्रंथ - रामायण, महाभारत, उपनिषध, भगवत गीता, ज्ञानेश्वरी, श्रृति, स्मृति, मनुस्मृति, दासबोध,
४ वेद, १८ पुरान, ६४ शास्त्र किंवा बहुजन संतों के अभंग वाणीमे "हिंदू" शब्द नही !!!.............

सहानुभूति

एक गरीब औरत ने बामुश्किल आटा पीस—पीसकर सोने की चूड़ियां बनवाईं।
चाहती थी कि कोई पूछे—कितने में लीं?
कहां बनवाईं?
कहां खरीदीं?
मगर कोई पूछे ही न;
सुख को तो कोई पूछता ही नहीं!
घबरा गई, परेशान हो गई;
बहुत खनकाती फिरी गांव में,
मगर किसी ने पूछा ही नहीं।
जिसने भी चूड़ियां देखीं, नजर फेर ली।
आखिर उसने अपने झोपड़े में आग लगा दी। सारा गांव इकट्ठा हो गया।
और वह छाती पीट—पीटकर, हाथ जोर से ऊंचे उठा—उठाकर रोने लगी
"लुट गई, लुट गई! उस भीड़ में से किसी ने पूछा कि अरे, तू लुट गई यह तो ठीक, मगर सोने की चूड़ियां कब तूने बना लीं?
तो उसने कहा: अगर पहले ही पूछा होता तो लुटती ही क्यों!
यह आज झोपड़ा बच जाता, अगर पहले ही पूछा होता।

सहानुभूति की बड़ी आकांक्षा है
कोई पूछे, कोई दो मीठी बात करे।
इससे सिर्फ तुम्हारे भीतर की दीनता प्रगट होती है, और कुछ भी नहीं।
इससे सिर्फ तुम्हारे भीतर के घाव प्रगट होते हैं, और कुछ भी नहीं।
सिर्फ दीनऱ्हीन आदमी सहानुभूति चाहता है। सहानुभूति एक तरह की सांत्वना है,
एक तरह की मलहम—पट्टी है।
घाव इससे मिटता नहीं, सिर्फ छिप जाता है।
मैं तुम्हें घाव मिटाना सिखा रहा हूं।
ओशो: कहै वाजिद पुकार–(प्रवचन–10)

जिसका कोई वैज्ञानिक आधार न हो वह अंधविश्वास कहलाता है।

क्या. आप अंधविश्वासी है? नही न, हर व्यक्ति अपने आप को अंधविश्वासी नही मानता है। सिर्फ झाड फूक करवाना, टोना टुटका की प्रथा ही अंधविश्वानस नही कहलाता है। हर वह विश्वास जो आंख बंद करके किया जाय। जिसका कोई वैज्ञानिक आधार न हो वह अंधविश्वास कहलाता है। गौर करे रोजमर्रा के इन खास अंधविश्वासों पर और अवगत कराये अपने सभी करीबी दोस्तो‍ और रिश्तेदारों को।
1. किसी को बांये हाथ से पैसे देना  अशुभ
2. किसी व्रत-त्यौहार के खिलाफ बोलना आशुभ
3. किसी के घर में बीमार पड़ जाने पे,लाल मिर्च को आग पे जला के घर में धुवां करना
4. घर दुकान दरवाजे पे/नयी कार आदि पे निम्बू हरी मिर्च टांगना
5. भभूत खाना/खिलाना
6. बच्चों/सयानो के गले/बाजू में ताबीज पहनना
7. बिल्ली रास्ता  काटने पर अशुभ
8. चप्पल उल्टी होने पर अशुभ
9. बाहर जाते समय टोकना अशुभ
10. किसी त्योहार के दिन काले कपडे पहनना अशुभ
11. घर के निर्माण के समय उसकी नीव में ताम्बे/स्वर्ण मुद्रा डालना शुभ
12. किसी कार्य के प्रारम्भ में छींकना अशुभ
13. गुरूवार शनिवार और मंगलवार को दाड़ी/बाल कटवाना अशुभ
14. शनिवार को तेल या तेल में सिक्के का दान करना शुभ
15. बच्चों को नजर लगना
16. चोरी करके घर में बोतल में मनी प्लांट उगना अशुभ
17. पीछे से किसी को नमस्ते आदि करना अशुभ
18. पड़ोस में खाने की वस्तु किसी बर्तन में देने पर खाली बर्तन वापस करना अशुभ
19. विधवा स्त्री का किसी शुभ कार्य में शामिल होना अशुभ
20. कौवें का छत पर बैठ कर बोलना अशुभ
21. रात में कुत्ते का रोना/ अलग प्रकार से भोंकना अशुभ
22. लड़की से वंश न चलना।
23. बच्चों को परीक्षा के लिए दही शक्कर खिलाकर भेजना शुभ
24. गले या बाजु में काला धागा बाँधना।
25. बच्चे को काला टीका लगाना।
26. नदी में सिक्के फेंकना।
27. किसी दिन विशेष किसी खास दिशा की यात्रा न करना।
28. अख़बारों में राशिफल देखना उसके अनुसार कार्यक्रम बनाना।
29. रात में किसी को पैसे उधार देने या लौटाने से परहेज करना।
30. शनिवार को लोहा न खरीदना।
31. विशेष संख्या जैसे 13 को अशुभ मानना।
32. उल्लू पक्षी का दिखना अशुभ
33. छिपकली का ऊपर गिर जाना अशुभ
34. सवप्न फल को भविष्‍वाणी की तरह विश्वास करना
35. किसी ओबीसी जैसे तेली जाति के व्यक्ति का सुबह सुबह मुह न देखना अशुभ मानना
36. एससी जाति के व्यक्ति को ग्रहण में बासी खाना दान करना
37. कुछ कहते समय बिजली बंद हो जाय तो झूठ बोल रहा है
38. कुछ कहते समय बिजली आ जाय तो सच बोल रहा है
39. धनतेरस के दिन यह सोच कर खरीददारी करना की आज धनतेरस है।
40. भविष्य  वाणी पर भरोसा करना कुण्डनली ज्यो तिष आदि
41. वास्तु  को मानना एवं उसके अनुसार टोटके या तोड फोड करना
42. दान कर्म से मेरा भला होगा यह सोच कर दान देना
43. मृत पूर्वज को पानी पिलाना खाना खिलाना या श्राद्ध कर्म करना
44. विवाह के लिए शुभमुहूर्त निकलवाना
45. जिसके साथ बुरा हुआ है इसका मतलब उसने पूर्व जनम में इस जन्म् में बुरा किया होगा ये मानना
46. किन्नरों की दुआ बद्दुआ पर विश्वास करना।
यदि आप को ये समझ मे नही आ रहा है तो ये समझिये आप जानवर है जानवर मानसिक गुलाम होता है यदि समझ मे आ रहा है तो आप बुद्धजीवी है फिर भी वुद्धजिवी का प्रतिशत कम है नही  तो आप की व्यवस्था होती यानी आप शासक होते।

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