जेएनयू के जिन छात्रों से देश को खतरा है, हमारे लिए उनका परिचय जानना जरूरी है।
1. कन्हैया कुमार- छात्रसंघ अध्यक्ष। पिताजी अपाहिज है तथा माँ तीन हजार रू पगार में आँगनवाडी में कार्य करती है, उनकी कमाई से ही पूरे परिवार का पेट पलता है।
2. राम नागा - छात्रसंघ महासचिव। गरीब दलित परिवार से है। भूखमरी के लिए कुख्यात कालाहांडी के निवासी हैं।
3. चिंटु कुमारी - छात्रसंघ की पूर्व महासचिव। बिहार के दलित परिवार से है। इसकी माँ चूडियाँ बेचकर घर चलाती है।
4. लेनिन कुमार - छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष। तमिलनाडु के निवासी। न पूरी तरह अंग्रेजी जानते हैं, न हिन्दी। बावजूद जेएनयू ने उन्हे अपना नेता चुना।
5. उमर खालिद - नास्तिक है। इन्होंने येल विश्वविद्यालय की फैलोशिप का प्रस्ताव इसलिए ठुकरा दिया, क्योंकि उन्हें दलित व आदिवासियों के लिए काम करना था।
इनमें से किसी के खिलाफ अभी तक पुलिस एक भी सबूत पेश नहीं पेश कर सकी । और जो सबूत पेश किये गए वे फर्जी निकले। बावजूद इन्हें देशद्रोही करार देकर पूरे देश में बदनाम कर दिया गया। गरीब, मजदूर, किसान और दलित परिवार से आने वाले ये बच्चे देशद्रोही हो गये और जनता का लाखों करोडो पैसा लूटकर विदेशी बैंकों में जमा करने वाले सबसे बड़े देश भक्त हो गये। सरकार ने उन्हीं देशभक्त कारोबारी घरानों के एक हिस्से के 1 लाख 14 हजार करोड़ रूपये माफ कर दिये । न कोई चूं हुई और न ही चर्चा। दरअसल बीजेपी मनुवादी कोख से पैदा हुई पार्टी है। लिहाजा इसका बुनियादी चरित्र ही दलित, आदिवासी, महिला, गरीब, मुस्लिम विरोधी है।कॉरपोरेट परस्त होने के नाते मजदूरों, किसानों और प्रगतिशील विचार रखने वाले नौजवानों से 36 का रिश्ता है। केन्द्र सरकार इनकी समस्याओं का हल करने के बजाय समस्याओं का स्रोत बन गई है।
लोकतंत्र संस्थाओं से चलता है। लेकिन आज संस्थाओं को ही अपाहिज किया जा रहा है। फांसीवाद का जन्म ऐसे ही होता है। संकट की इस घड़ी में लोकतांत्रिक प्रगतिशील विचार रखने वाली ताकतों को एकजुटता दिखाते हुए अपने अपने मोर्चों पर मुश्तेन्दी दिखाना जरूरी हो गया है। अभी एकजुट नहीं हुए, तो फिर बहुत देर हो चुकी होगी।