मोहन भागवत ने ये बात क्या छेड दी कि हमारे लोग चल पडे गालीगलोच करने ।
मोहन भागवत की तस्वीर की पोस्ट घुमाने से और फेसबुक पर गाली देने से क्या होगा ?
क्या इससे भागवत डर जायेगा ?
मोदी डर जायेगा ?
क्या आप को लगता है की इससे डरकर वह ऐसा कदम नही उठायेंगे ?
आप को किसने कहा की वो लोग ऐसा नही कर सकते ?
बिल्कुल कर सकते है । अगर राज्यसभा मे भी अनुकूल परिस्थिती होगी तो संविधान बदला जा सकता है ।
लोकसभा मे पहले से ही मेजॉरिटी है ।
विपक्ष के कुछ सदस्य भी चाहते है की संविधान मे बदल हो ।
संविधान बदला ही नही जा सकता ये कैसे हो सकता है ?
डेमोक्रॅसी है । लोकतंत्र है ।
हमारा लोकतंत्र बहुमत का लोकतंत्र है ।
इसलिए बहुमत जिस पक्ष मे होगा उस पक्ष की मान्यता से देश का कारोबार चलेगा ।
अगर बहुमत वाले पक्ष को लगता है की देश का संविधान हमे दिक्कत पैदा कर रहा है, तो संसद की मान्यता से उसे बदला भी जा सकता है ।
तो गाली गलोच से क्या होगा ?
वो बदलने की स्थिती मे है ।
अगर चाहेंगे तो बदल सकते है । कौन रोकेगा ? और कैसे ?
हमे ये सोचना चाहीए कि इस स्थिती मे उनको पहुंचाया किसने ?
कौन है इन सबका जिम्मेदार ?
अगर इमानदारी से जवाब ढुंढेंगे तो जवाब यही होगा की हम है जिम्मेवार ।
हमे वोट की ताकत मिली, लेकीन
हम कांग्रेस को जितवाते रहे,
भाजप को जितवाते रहे,
सपा को जितवाते रहे,
शिवसेना को जितवाते रहे ।
इससे धीरे धीरे हमारी ताकत कम होती गयी । सत्ता के दायरे से पूरा समाज बाहर रहा और जिन्हे लाभ मिला वह एक ऐसी विचारधारा के पास चलते गये जो संविधान को बदलना चाहती थी ।
ओबीसी भी चले गये, क्युं की काम चाहीये तो इनकॊ बात माननी होगी,
ये सोच कर ओबीसी इनके खेमे मे दाखिल हुए ।
हमारे पास कोई अक्ल नही थी ।
ना जिसे हम नेता कहे ऐसी शक्ल थी ।
अगर कोई नेता उभरा तो वह जल्द ही भडवा बन गया ।
और रहे मतदाता, वो सौ सौ रूपये मे बिक गये । अब बताओ, कौन आपकी पार्टी मे रहना पसंद करेगा ?
बाबासाहब ने जो खाना हमे परोसा था,
उसमे हमारे हाथों से हमने जहर मिलाया ।
जो चीज हमारे रक्षण के लिये दी थी,
उस संविधान को हम धीरे धीरे कमजोर बनाते चले गये ।
और अब है की गाली गलोच कर रहे है ।
क्या होगा मेरे भाई ?
जेल जाओगे और बीवी बच्चे भीख मांगेंगे । किसी को दया नही आयेगी ।
ना कोई पासवान आयेगा,
ना आठवले आयेगा मदद के लिये ।
शांती से काम लेना है ।
भागवत सिर्फ कह रहा है की इसे बदला जा सकता है ।
तो बदले ।
हम फिरसे बदल देंगे ।
सवाल ये है की ये खुले आम क्युं कह रहा है ? सरकार उसकी है ।
उसका कुत्ता एक मिनिट मे मालिक का काम करेगा ।
फिर मीडीया मे जाकर बयाण देने की जरूरत क्या है ?
रोहीत वेमुला की हत्या के बाद जनआंदोलन तेज होते जा रहा है ।
तो ईनकी कोशीश यही रहेगी की इसे दबा दिया जाये या फिर ध्यान किसी और जगह पर हटाये ।
हो सकता है इसलिये भागवत ने ये दाव खेला है ।
अगर ध्यान हट गया तो देशव्यापी बनते जा रहे जनआंदोलन को ठंडा किया जा सकता है ।
नये मुद्दे पर फिर आंदोलन खडा हो,
तब तक उन्हें सांस लेने की फुरसत मिल सकती है ।
तब तक दलित, मुस्लीम, ओबीसी की एकता को तोडने का नुस्खा हाथ लग सकता है ।
मंदीर आंदोलन का मुद्दा उठ सकता है ।
तब तक संविधान के मुद्दे पर दलितों का आंदोलन डायव्हर्ट करने का ये मामला है । भावनाओं मे आकर काम लेने का समय नही रहा ।
रोहीत वेमुला के मुद्दे पर जो आंदोलन हम चला रहे है, उसे अंजाम देकर रहेंगे । अब पीछे हटना नही।
- जय मुलनिवासी
शनिवार, 20 फ़रवरी 2016
संविधान जीने का आधार नही है उसे बदला जा सकता है।
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