श्री क्रष्ण के जन्म की अतिशोक्ति ।।। मित्रो पुराणो के अनुसार श्री क्रष्ण के जन्म की कहाने कुछ इस प्रकार है ।।। जब देवकी और वासुदेव को विवाह के बाद विदा किया जा रहा था, तो देवकी के भाई कंस ने निश्चय किया कि वर वधु को वो खुद अपने मुकाम तक छोड़ कर आयेगा और उसने रथ की कमान थाम ली ।।। जब वो रथ को लेकर थोड़ी दुर गया तो अचानक आकाशवाणी हुई जिसमे एक अज्ञात व्यक्ति ने ये कहा कि देवकी का आंठवा पुत्र ही कंस का वध करेगा।।
यह आकाशवाणी सुनकर कंस क्रोधीत हो उठा और उसने उसी समय देवकी को जान से मारने का निश्चय करता है, किन्तु वासुदेव कस को समझाते हुए कहा कि वो एसा ना करे अपनी बहन की हत्या का पाप अपने सिर ना ले, उन्हे जो भी संतान होगी वो (वासुदेव) खुद लाकर कंस को सौप देंगे ।।। कंस वासुदेव पर विश्वास करता है और उन्हे जाने देता है ।
जब वासुदेव के यहा पहला पुत्र जन्म लेता है, तो वासुदेव अपने प्रण के अनुसार बच्चे को कंस को सौपने ले जाते है, लेकिन महाराज कंस वासेदेव से कहते है कि उन्हे वासुदेव की आठवी संतान से खतरा है, अतः आप इस बच्चे को ले जाइये, ये सुनकर वासुदेव वहा से चले जाते है, उसी समय चुगलीखोर नारद मुनी वहा प्रकट होते और कंस से कहते है कि आप बहुत बड़ी गलती कर रहे हो, वासुदेव के सभी बच्चो मे भगवान का अंश है। उन्ही मे से किसी के हाथो आपका विनाश होगा ।।।
नारदमुनी की बात सुनकर कंस तुरंत वासुदेव के पास जाता है, और वासुदेव तथा देवकी को करागार मे कैद कर देता है तथा उन्के पहले पुत्र की हत्या कर देता है, इसी प्रकार कंस एक के बाद एक देवकी के सात पुत्रो की हत्या कर देता है ।।।
और जब आठवे पुत्र के रुप मे भगवान का जन्म होता है, तो वासुदेव उस बच्चे को चमत्कारीक रुप से यशोदा तथा नंदलाल के यहा छोड़ आते है, जहा पर श्री क्रष्ण का पालन पोषण होता है।।।।
मित्रो वैसे तो यह एक कहानी काल्पनीक है लेकीन आपको इस पाखंड से उजागर करने के लिये,
जो लोग इसे सत्य मानते है उन लोगो से मैं कुछ सवाल पुछता चाहता हूं ।।।
1) भगवान ने कंस को आकाशवाणी से सुचीत क्यो किया की देवकी का आठवा पुत्र उनका संहार करेगा, क्या भगवान को बाकी के सात निर्दोष मासुम बच्चो की जान से कोइ मतलब नही था ?
2) श्री क्रष्ण ने आंठवे नम्बर पर हि जन्म क्यो लिया ???? अगर वो पहले ऩम्बर पर हि जन्म ले लेते तो बाकी के बच्चो की जान बच जाती ।।।
3) कंस भी अजीब मुर्ख आदमी था, सोचता था कि बहन देवकी की हत्या करेगा तो पाप लगेगा, तो उसने यह बात क्यो नही सोची की सात सात निर्दोष मासुम बच्चो की हत्या करने से तो उसे सात गुना पाप लगेगा ।।।
उस मुर्ख कंस ने यह बात क्यो नही सोची की होने वाले आठ मासुम बच्चो की हत्या करने से तो अच्छा है की देवकी को हि खत्म कर दिया जाय, ताकी ना रहेगा बांस और ना बजेगी बासुरी ।।।
4) चलो अगर कंस खुन खराबा नही करना चाहता था, तो फिर उस बेवकुफ ने देवकी और वासुदेव को बंदीग्रह मे एक साथ क्यो कैद किया, क्या उसमे इतनी अक्ल नही थी कि अगर ये दोने एक साथ रहेंगे तो बच्चे पैदा करेंगे ???
5) बाकी के उन सात बच्चो की हत्या का असली जुम्मेदार कौन, मारने वाला कंस या देरी ये जन्म लेने वाले श्री क्रष्ण य़ा फिर कंस को भड़काने वाला चुगली खोर नारदमुनी ????
6) किसी भगवान ने नारद जैसे दुष्ट पापी चुगलीखोर मुनी का संहार करने की कोशीष क्यो नही की??? या फिर मै यह कहू कि नारद सभी कालपनिक पौराणीक कथाओ का एक हास्य पात्र था ????
मैने इस पोस्ट मे कुछ भी गलत नही कहा है, सिर्फ पुराणों के अनुसार आपको उजागर करने के लिए कुछ सवाल किये है,
गालीया- गलोच और भगवानो की वकालत करने से पहले आपके काल्पनीक भवीष्य पुराणों में इसकी जाँच करें फिर यहाँ वकालत करें...
घन्यवाद....
रविवार, 24 अप्रैल 2016
आज जानते है की कैसे हुआ भगवान श्री कृष्ण का जन्म का गप..???
इतना बड़ा झूँठ लिखते समय शर्म नही आई
हनुमान स्पेशल
“हनुमान ज्ञान गुण सागर” अथार्त्: हनुमान का ज्ञान सागर से भी बड़ा था।
बताइये तो इतना बड़ा झूँठ लिखते समय शर्म नही आई तुलसीदास को और न इन अंध भक्तों को ही पढ़ने में शर्म आती है।
सोचिये ज़रा हनुमान का ज्ञान कहाँ चला गया था जब लक्ष्मण के लिए हिमालय पर्वत पर जड़ी बूटी ढूँढ रहा था?
मान लो तब हनुमान की अकल घास चरन चली गई थी।
इसलिए वो हिमालय पर्वत को ही उठालाया। जब हनुमान हिमालय पर्वत उठा सकता है तो फिर लंका जाने के लिए पुल बनाने की क्या जरुरत थी?
ये बन्दर हनुमान तो पूरी सेना को बड़ी ही आसानी से ले जा सकता था?
मान लो फिर हनुमान की अकल घास चरने चली गई थी।
अब समुन्द्र मैं कंकड़ ,पत्थर से पुल बनाने की क्या जरूरत थी?
इसमें समयकी बर्बादी हो रही थी हनुमान दो चार हिमालय पर्वत ही समुन्द्र मैं उतार देता, तो पुल जल्दी बन जाता।
उधाहरण अगर आप क्रेन चलाने बाले से कहो कि भाई हमारी छत पर एक बार मैं एक ईंट पहुंचानी है तो क्रेन बाला आपको पागल ही कहेगा,इससे या साबित होता है कि हनुमान दिमाग से कितना पैदल था।
मान लो फिर बन्दर हनुमान की अकल घास चरने गयी थी।
राम नाम लिखा पत्थर नहीं डूबता फिर राम और राम की सेना क्यों डूब रही थी?
अगर नहीं डूब रही थी तो फिर ये‘रामसेतु’ बनाने की ज़हमत राम और हनुमान ने क्यों उठाई?
क्यों क्यों इतनी समय की बेवजह बर्बादी की?
फिर ये लाइन कियों लिख दी गयी है:
‘जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीसतिहु लोक उजागर’ये लाइन कहाँ मेल खाती है हनुमान के लिए..?
बस अंध भक्तों आस्था के नाम पर अंधे बने रहो !
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