सोमवार, 11 अप्रैल 2016

गर्भपात करवाना गलत है, अगर इसे पढ़ कर आपके दिल की धड़कने बढ़ जाये तो शेयर अवश्य करे

गर्भपात करवाना गलत माना गया है,
कृपया इस लेख को अवश्य पढ़े और अगर इसे पढ़ कर आपके दिल की धड़कने बढ़ जाये तो शेयर अवश्य करे |
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अमेरिका में सन 1984 में एक सम्मेलन हुआ था - 'नेशनल राइट्सटू लाईफकन्वैन्शन'।
इस सम्मेलन के एक प्रतिनिधि ने डॉ॰ बर्नार्ड नेथेनसन के द्वारा गर्भपात की बनायी गयी एक अल्ट्रासाउण्ड फिल्म 'साइलेण्ट स्क्रीम' (गूँगी चीख) का जो विवरण दिया था, वह इस प्रकार है-
'गर्भ की वह मासूम बच्ची अभी 15 सप्ताह की थी व काफी चुस्त थी। हम उसे अपनी माँ की कोख मेँ खेलते, करवट बदलते व अंगूठा चूसते हुए देख रहे थे। उसके दिल की धड़कनों को भी हम देख पा रहे थे और वह उस समय 120 की साधारण गति से धड़क रहा था। सब कुछ बिलकुल सामान्य था; किन्तु जैसे ही पहले औजार (सक्सन पम्प)ने गर्भाशय की दीवार को छुआ, वह मासूम बच्ची डर से एकदम घूमकर सिकुड़ गयी और उसके दिल की धड़कन काफी बढ़गयी।
हालांकि अभी तक किसी औजार ने बच्ची को छुआ तक भी नहीं था, लेकिन उसे अनुभव हो गया था कि कोई चीज उसके आरामगाह,उसके सुरक्षित क्षेत्र पर हमला करने का प्रयत्न कररही है।
हम दहशत से भरे यह देख रहे थे कि किस तरह वह औजार उस नन्हीं-मुन्नी मासूम गुड़िया- सी बच्ची के टुकड़े-टुकड़े कर रहा था। पहले कमर,फिर पैर आदि के टुकड़े ऐसे काटे जा रहे थे जैसे वह जीवित प्राणी न होकर कोई गाजर-मूली हो और वह बच्ची दर्द से छटपटाती हुई, सिकुड़कर घूम-घूमकर तड़पती हुई इस हत्यारे औजार से बचने का प्रयत्न कर रही थी।
वह इस बुरी तरह डर गयी थी कि एक समय उसके दिल की धड़कन 200 तक पहुँच गयी! मैँने स्वंय अपनी आँखों से उसको अपना सिर पीछे झटकते व मुँह खोलकर चीखने का प्रयत्न करते हुए देखा, जिसे डॉ॰ नेथेनसन ने उचित ही 'गूँगी चीख' या 'मूक पुकार' कहा है। अंत मेँ हमने वह नृशंस वीभत्स दृश्य भी देखा, जब सँडसी उसकी खोपड़ी को तोड़ने के लिए तलाश रही थी और फिर दबाकर उस कठोर खोपड़ी को तोड़ रही थी क्योँकि सिर का वह भाग बगैर तोड़े सक्शन ट्यूब के माध्यम से बाहर नहीं निकाला जा सकता था।' हत्या के इस वीभत्स खेल को सम्पन्न करने में करीब पन्द्रह मिनट का समय लगा और इसके दर्दनाक दृश्य का अनुमान इससे अधिक और कैसे लगाया जा सकता है कि जिस डॉक्टर ने यह गर्भपात किया था और जिसने मात्र कौतूहलवश इसकी फिल्म बनवा ली थी।
उसने जब स्वयं इस फिल्म को देखा तो वह अपना क्लीनिक छोड़कर चला गया और फिर वापस नहीं आया ! —
आपका एक शेयर किसी अजन्मी बच्ची -लडकी की जान बचा सकता है!
"Save Girls "

आख़िर अपनी आत्मा को कया कहेगा

ये एक विचार है आज के दोर के tv के पाखंडी लोगो के लिए इसको अनुपम खेर जेसे चापलूस लोगो से जोड़ के ही देखेकल्पना कीजिये कि श्रीनगर एयर पोर्ट पर गांधी जी पहुँचते एनआईटी के छात्रों से मिलने और पुलिस उन्हें रोकती तो वे क्या करते ?  कायरों की तरह अगली फ़्लाइट से फ़ोटो खिंचवा कर वापिस नहीं आ जाते , वे वहीं पर अपने अधिकार के लिये धरना या भूख हड़ताल पर बैठ जाते जो कि जेल तक में जारी रहता, छूटने पर या जम्मू तक छोड़ दिये जाने की सिथति में पुन: पैदल ही श्रीनगर चल देते रास्तें में कारवाँ बढ़ता रहता और मौलिक अधिकार की लड़ाई को कोर्ट कचहरी आदि में भी तब तक लड़ते जब तक कि सरकार झुक कर उन्हें एनआईटी में सादर प्रवेश नहीं करने देती । वहॉं पहुँच कर  छात्रों को सत्याग्रह और अहिंसा की सीख देते और उनसे पूरे देश में मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिये आंदोलन चलाने को कहते । कम से कम १०% प्रतिशत छात्र उनके पूर्णकालिक सिपाही बन गये होते और गांधी का सत्याग्रह सरकार , पुलिस , सेना की संयुंक्त शक्ति पर भारी पड़ता। यह भी संभव है कि बजाय लौटने के वे पाकिस्तान बार्डर पर पहुँच कर सड़क रास्ते से नियमानुसार वीज़ा लेकर पाकिस्तान वाले कश्मीर पहुँच कर भारत पाक एका या महासंघ के लिये लड़ रहे होते।               एक सफलता से दूसरी के लिये ज़मीन बनाना और लाखों को उसमेंजोडना कोई गांधी से सीखे , उनके तरीक़े से सीखें । कैसे एक मामूली सवाल नमक का या देशी कपड़े का चरखे के ज़रिये , एक सशक्त हथियार बना दिया था ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध ।          और यहॉं देखिये स्वार्थी नचनिया जोकर हवाई अड्डे से दब्बू की तरह लौट आया ! गले में पड़ा चमक हीन पद्म भूषण का तमग़ा अब बोझ ही बन जायेगा और रात में एेसे अवसरवादियों को नींद भी नहीं आती होगी । आख़िर अपनी आत्मा को कया कहेगा ? मुझे उन छात्रों की चिंता है जो अपने हाल पर छोड़ दिये जायेंगें क्यों कि स्वत:स्फूर्त उनहोंनें झंडा तो फहरा दिया लेकिन अब उनकी कोई ख़ैर ख़बर लेने वाला नहीं होगा। छ: महीने रुक कर देख लेना क्या होगा उनका ?

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