'बेकसूर लोग मारे गए और राजनेता तुच्छ बयानबाजी में
उलझे रहे.' 26/11 मुंबई आतंकी हमले के बाद एक अंग्रेजी
अखबार ने इन्हीं शब्दों में देश के हालात बयां किए थे.
साल बदले, सत्ता बदली लेकिन हालात बिल्कुल वैसे ही हैं.
देश में आतंकी हमला होता है. जवान शहीद होते हैं. घायल
होते हैं. उनका परिवार बिलखता है. देश का बच्चा-बच्चा
उनके लिए रोता है. लेकिन हमारे 'सो कॉल्ड' नेताओं के
लिए तो यह जैसे यह एक 'बड़ा मौका' है. राजनीति
चमकाने का.
सत्ता संभालने से पहले लाउडस्पीकर लेकर पाकिस्तान को
धूल चटा देने का ढिंढोरा पीटने वाले नरेंद्र मोदी पीएम बने
तो अब उसी देश में जाकर अपना पसंदीदा साग खाने लगे.
कश्मीर का मुद्दा भले ना सुलझे लेकिन पाकिस्तान में
बैठकर कश्मीरी चाय भी पी आए, देश का क्या
है... बेगुनाह मरते रहे हैं, मरते रहेंगे. कौन सी बड़ी बात है
नेताओं के लिए. बहुत होगा तो यही कहेंगे कि हमले का मुंह
तोड़ जवाब देंगे, कड़े शब्दों में निंदा करते हैं,
फलाना..ढिमकाना.
बीते शनिवार को जब आतंकियों ने पठानकोट में हमला
किया तो उसकी जानकारी खुफिया एजेंसियों को 24 घंटे
पहले मिल गई, फिर भी हमला हो गया. जवान शहीद होते
रहे, घायल होते रहे और देश के प्रधानमंत्री मैसूर में फिर
लाउडस्पीकर पर दहाड़ रहे थे- 'हमें जवानों पर गर्व है.'
लेकिन मुझे इस बात पर शर्म आती है कि 'देश नहीं झुकने
दूंगा' का राग अलापने वाला प्रधानमंत्री खुली आंखों से
देश को तबाह होते देख रहा है. मंच पर मोदी इस बात का
गुणगान कर रहे थे कि उन्होंने योग दिवस का आयोजन
कराया और दुनिया भर में भारत को सिर आंखों पर बिठा
लिया गया. जिस वक्त उन्हें आतंक से निपटने के लिए
रणनीति बनाने और जवानों का मनोबल बढ़ाने का प्रयास
करना चाहिए उस वक्त वह घटना स्थल से सैकड़ों कोस दूर
राजनीतिक गोटियां फिट करने में व्यस्त थे. उनके पास
इतना भी वक्त नहीं होता कि वह हालात का सही से
जायजा भी ले सकें और एयरपोर्ट पर ही रक्षा मंत्री से
गुफ्तगू करते हैं.
सरकार की नाकामी छुपा रहे हैं गृह मंत्री
देश के गृह मंत्री कहते हैं कि इससे भी बड़ा नुकसान हो
सकता है. शायद उन्हें परिवार में किसी को खोने का गम
मालूम नहीं. हमारे सैनिकों ने मुंह तोड़ जवाब दिया, हमारे
जांबाजों ने बड़ा हमला नाकाम किया... ये राग अलाप रहे
गृह मंत्री अपनी सरकार की नाकामी छुपा रहे हैं. उस
सिस्टम की नाकामी छुपा रहे हैं जिसकी वजह से जवान
शहीद हो रहे हैं और वो गर्व से कह रहे हैं कि 'ज्यादा
नुकसान' नहीं हुआ है. गृह मंत्री साहब को उन शहीद
जवानों के परिवार वालों से नजरें मिलाकर ये शब्द कहने
चाहिए थे तब देश उनके चेहरे का रंग देखता.
दुनिया भ्रमण पर निकले प्रधानमंत्री ने हर जगह आतंकवाद
मिटाने की रट तो लगाई लेकिन अपने ही घर में लगी आग
बुझाने का ख्याल उनको नहीं आता. गुरदासपुर, उधमपुर
और अब पठानकोट में हुआ आतंकी हमला इस बात पर मुहर
लगाता है कि सरकार इस मोर्चे पर फेल है. सिर्फ अपना
झूठा गुणगान कर सकती है, हकीकत कुछ और है.
आखिर PM मोदी के मन में क्या है?
ऐसा नहीं कि आतंकी हमले पहले नहीं हुए. हर सरकार में
होते हैं, लेकिन तब शायद गुजरात के तत्कालीन सीएम
साहेब भूल गए थे कि क्या कहे जा रहे हैं. और विपक्ष वाले
तो हर तरफ से थके-हारे बैठे थे. कुछ मिल नहीं रहा था,
सो बैठे-बिठाए पठानकोट का मुद्दा मिल गया और लगे
भुनाने. 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' टाइप मामला है.
कभी विपक्षी सरकार पर यह कहते हुए कि 'पाकिस्तान
को लव लेटर लिखना बंद करिए', निशाना साधने वाले मोदी
क्या खुद इस बात पर अमल कर पाए हैं? साड़ी, शॉल और
पगड़ी के तोहफे बंट रहे हैं और सेना के जवानों की वर्दी
खून से रंग रही है. 'मन की बात' करने वाले प्रधानमंत्री
जरा इस राज से पर्दा हटाएं कि असल में उनके मन में चल
क्या रहा है?
रविवार, 3 जनवरी 2016
खुला खत: देश 'झुक' रहा है PM साहेब
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