मुसलमान तो दामाद हैं.
दामादों को तो पलकों पर बिठाया जाता है, फिर भारत के हिन्दू,
मुसलमानों से इतनी घृणा करने का ड्रामा क्यों करते हैं?
जब जानते हैं, बादशाह अकबर हिन्दुओं के दामाद थे. अकबर ने
जोधाबाई से शादी की थी.
आज के भी कुछ उहाहरण देखिये-
1. विश्व हिन्दू परिसद के नेता अशोक सिंघल ने अपनी बेटी की शादी
मुख़्तार अब्बास नकवी से की है.
2. मुरली मनोहर जोशी ने अपनी बेटी की शादी शाहनवाज़ हुसैन से
की है.
3. मोदी की भतीजी की शादी मुस्लिम से हुई है.
4. लाल कृष्णा आडवानी की बेटी ने दूसरी शादी मुस्लिम से की है.
5. सुब्रह्मनियम स्वामी की बेटी "सुहासिनी " ने मुस्लिम से शादी
की है.
6. शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे ने अपनी पोती की शादी मुस्लिम से
की.
7. मुसलमानों के खिलाफ सबसे ज़्यादा ज़हर उगलने वाला विहिप का
नेता प्रवीण तोगडि़या की बहन से शादी करने वाला मुस्लिम आज
बहुत बड़ा रईस है. तोगड़िया आज भी अपनी बहन से मधुर सम्बन्ध रखता
है.
तो क्या धर्म के इन ठेकेदारों को मुस्लिम दामाद अधिक पसंद हैं?
समझ जाओ, ये लोग धर्म के नाम पर सिर्फ राजनीति करते हैं और दंगे
करवाते हैं, लेकिन मुसलमानों के खिलाफ सबसे ज्यादा जहर उगलने वाले
नेताओं की रिस्तेदारी भी मुसलमानो से ही है.
मंगलवार, 8 दिसंबर 2015
मुसलमानों से इतनी घृणा का ड्रामा क्यों
गुरुवार, 26 नवंबर 2015
26/11
मुंबई हमले में कई वीर सपूतों को हमने खो दिया। इस
हमले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। यह हमला सिर्फ
मुंबई पर न होकर देश पर हमला था। 26-28 नवंबर तक रात
दिन चली मुठभेड़ के बाद आतंकियों को मार गिराया गया
और एक को जिंदा पकड़ लिया गया। इस एकमात्र
आतंकी अजमल कसाब को 21/11 को पुणे
की जेल में फांसी दे दी गई।
मेजर संदीप उन्नीकृष्णन
भारतीय सेना में मेजर जो बाद में नेशनल
सिक्योरिटी गार्ड में स्पेशल टास्क फोर्स का हिस्सा
बने। वे नवंबर 2008 में मुंबई के हमलों में आतंकवादियों से लड़ते
हुए मारे गए। उन्होंने इस ऑपरेशन में अपने साथियों को यह
कहते हुए पीछे कर दिया था कि ऊपर मत आना, मैं उन्हें संभाल लूंगा।
उन्नीकृष्णन ने न सिर्फ आतंकियों
की गोलियां अपने ऊपर लीं बल्कि अपने
एक घायल साथी को भी सुरक्षित बाहर
तक पहुंचा दिया। उनकी बहादुरी के लिए
उन्हें 26 जनवरी 2009 को अशोक चक्र से
सम्मानित किया गया।
अशोक कामटे
मुंबई हमले की रात मैट्रो सिनेमा के पास आतंकियों
को जवाब देने के लिए कामटे को वहां भेजा गया
था। आतंकियों से आमने सामने की मुठभेड़ में उन्होंने
तब तक जवाबी कार्यवाही की जब तक उनके शरीर
में जान रही। 28 नवंबर को पूरे राजकीय सम्मान के
साथ उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।
हेमंत करकरे
1982 बैच के आईपीएस अधिकारी थे। उनकी
कार्यकुशलता को देखते हुए ही उन्हें मुंबई एटीएस का
प्रमुख बनाया गया था। उन्होंने नक्सलियों के
खिलाफ भी काबलियत का परिचय दिया था। वह
मुंबई हमले के दौरान 29 सितंबर 08 को मालेगांव में हुए
बम विस्फोट की गुत्थी सुलझाने में जुटे हुए थे। कामा
अस्पताल में आतंकियों के पहुंचने और लोगों को मारे
जाने की सूचना पर वह अपने जांबाज साथियों के
साथ वहां पहुंचे थे। कामा अस्पताल के बाहर पहुंचते
ही उन्हें आतंकियों के हमले का शिकार होना पड़ा।
इस मुठभेड़ में वह वीरगति को प्राप्त हुए।
अरुण जाधव
पुलिस अधिकारी अरुण जाधव आतंकियों से सीधी
चली मुठभेड़ में घायल हो गए थे। उन्होंने कामा
अस्पताल में मरीजों को सुरक्षित बाहर निकालने में
अहम भूमिका निभाई थी। घायल अवस्था में उन्हें
अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां बाद में वह
ठीक हो गए।
एएसआई तुकाराम ओंबले
मुंबई हमले के दौरान ओंबले गिरगांव चौपाटी में तैनात
थे। सेना से रिटायर होने के बाद उन्होंने मुंबई पुलिस
ज्वाइन की थी। आतंकी हमले के दौरान उनके पास
केवल एक लाठी ही थी, लेकिन वह इससे घबराए नहीं
और आतंकियों को रोककर उनका सामना किया।
उन्होंने आतंकियों की सारी गोलियां अपने सीने पर
लीं और एक आतंकी को अंत तक नहीं छोड़ा। यह
आतंकी था अजमल कसाब जिसको 2111 को फांसी
दी गई। 26 जनवरी 2009 को उन्हें अशोक चक्र से
सम्मानित किया गया।
विजय सालस्कर
सालस्कर उसी टीम का हिस्सा थे जो टीम कामा
अस्पताल में आतंकियों से मुठभेड़ करने निकली थी।
कामा अस्पताल पहुंचते ही आतंकियों ने अपनी
बंदूकों का रुख इनकी ओर कर दिया, जिसमें उनकी
मौत हो गई।
बुधवार, 25 नवंबर 2015
असहिष्णुता न होती तो????
- असहिष्णुता न होती तो दादरी घटना ना होती..
- असहिष्णुता न होती तो जसोदा बेन को डर न लगता..
- असहिष्णुता न होती तो पाकिस्तान चले जाओ की आवाज़े न आतीं
- असहिष्णुता न होती तो लव जिहाद के झूठे घटना मसले न होते ।
- असहिष्णुता न होती तो हरामज़ादे और राम जादे की बातें न होतीं
- असहिष्णुता न होती तो सांसद नेता और राज्यपाल अपने पद और गरीमा को किनारे रखकर भेदभाव वाले बयान न देते..
- असहिष्णुता न होती तो 400 से ज़्यादा साहित्यकार अपने पुरस्कार वापस न करते..
- असहिष्णुता न होती तो टीपू को देशद्रोही न कहा जाता..
- असहिष्णुता न होती तो बड़े बड़े कलाकारों को पाकिस्तान भेजने का फ़रमान न आते।
- असहिष्णुता न होती तो बाबा सूरत सिंह अब तक अनशन पर न होते..
- असहिष्णुता न होती तो पंजाब में गुरु ग्रन्थ साहिब का अपमान न होता..
- असहिष्णुता न होती तो दलितों के मूंह में गोबर न ठूंसा जाता ।
- असहिष्णुता न होती तो फरीदाबाद में मस्जिद को लेकर दंगे न होते ।
- असहिष्णुता न होती तो हरियाणा में दलितों के मासूम बच्चो को ज़िन्दा न जलाया जाता ।
- असहिष्णुता न होती तो दंगे करवाने वाले सिंघल को लोह पुरुष का दर्जा न दिया जाता।
- असहिष्णुता न होती तो देश के पहले आतंकवादी गोडसे का मंदिर न बनता..
- असहिष्णुता न होती तो महिलाओ का अपनाम सरेआम न होता..
- असहिष्णुता न होती तो सोशल मीडिया पर भक्त गालियाँ न देते..
- असहिष्णुता न होती तो वसीम अकरम त्यागी जैसे पत्रकारों के फेसबुक अकाउंट बंद न होतें..
- असहिष्णुता न होती तो साध्वी अंडर वर्ल्ड डॉन छोटा राजन को हिंदू शेर न कहती..
- असहिष्णुता न होती तो मुल्क़ ग्रह युद्ध की तरफ़ जाता हुआ न दीखता..
- असहिष्णुता न होती तो प्रवीण तोगड़िया अब तक के सभी नरसंहारों की ज़िम्मेदारी न लेता..
- असहिष्णुता न होती तो देश में कभी ऐसा न होता..
और आप कहते हैं देश में असहिष्णुता जैसा कुछ भी नही है..?
मै नही मानता की देशमे असहिष्णुता का माहौल है..
पीछले दो तीन महिने से देश मे असहिष्णुता प्रमुख मुद्दा बना हुआ है ! मगर मेरी मान्यता है की हम भारत के लोग और हमारी सरकार विश्व के लीये सहनशीलता के ब्रान्ड ऐम्बेसेडर है !
हमारे प्रधानमंत्री ने संसद पर हुऐ हमले, कारगील और मुंबई के २६/११ के हमलो को भुलाकर पाकीस्तान से शोल और साडी का रीश्ता नीभाया ! क्या यह असहिष्णुता है ?
पीछले देढ साल मे सीमाओ पर पाकीस्तान गोला बारुद दाग रहा है ,और हमारी सरकार खामोश रहकर अपनी फौलादी सहीष्णुता का परिचय दे रही है ! विरोधी देश हमारे प्रति असहिष्णु न हो जाये ऊसका खयाल रखते हुऐ हमारे प्रधानमंत्री शहीद हो रहे जवानो को श्रध्धांजली तक नही देते ! मै कैसे मान लु मोदी सरकार असहिष्णु है ?
वाधा बोर्डर पर हमने ईद की मीठाई भीजवाई जीसे पाकीस्तान ने ठुकराई , लेकीन नवाज की भेजी हुई आम की टोकरी मोदी ने खुशी खुशी अपने सर पर ऊठाई ! फीर कैसे कह दे की मोदी असहनशील है ?
विदेश मे हमारे तीरंगे को ऊल्टा पकडा गया जीसे प्रधानमंत्री ने सह लीया और प्रधानमंत्री ने जब तीरंगे को कागज समज ऊस पर हस्ताक्षर कीये तो देश ने सह लीया ! क्या ये असहिष्णुता है ?
देश के बाहर जाकर हमारे प्रधानमंत्री भारत मे पैदा होने पर अपनी शरमींदगी बयान करते रहे ! देशको नाकारा , भ्रष्ट और भीखारी बताते रहे , फीर भी लोग मोदी..मोदी का नारा लगाते रहे ! क्या यह असहिष्णुता है ?
साध्वी प्रग्या, प्राची , निरंजना , योगी आदीत्य , साक्षी महाराज , संगीत सोम , गीरीराज कीशोर , अमित शाह , तोगडीया और औवेसी जैसे लोग भडकाऊ और देशविरोधी बयान देते रहे ! जो ईस बात का सबुत है की देश का कानुन और सरकार असहिष्णु नही है !
हमने कश्मीर मे अलगाववादीयो से समजौता करती सरकार को सह लीया ! और वहाँ की भाजपा-पीडीपी सरकार ने ISIS और पाकीस्तानी झंडो और नारो को सह लीया ! हमने बाबरी के गुन्हेगारो को भी सहा है और दादरी के हत्यारो को भी ! हमने हमलेबाजो को भी सहा है और जुमलेबाजो को भी सहा है ! हमने चायवाली नौलखीया मुफलीसी को भी सहा है और गायवाली बीफलीसी को भी ! हम परेश रावल की OMG पर भी नही भडके और आमीर की PK पर भी ऊतेजीत नही हुऐ !
मोदीजी देश मे नही रहते , आमीर देश से जाने की बात करते है और संधी जमात कुछ लोगो को पाकीस्तान भीजवाने पर आमादा है ! ईन सबके बीच हम हमारी सहनशीलता बनाये हुऐ है !
हम मोदी के मन की सुनेगे , हमारे मन की नही करेंगे तो भारत बदनाम होते बच जायेगा और हमारी राष्ट्रीयता भी बनी रहेगी ! हमारी सहनशीलता ही सरकार के असहिष्णु नही होने मे यागदान दे सकती है !
विरोध धर्म देख कर हो रहा है
आमिर के बयान के बाद असहनशीलता विरोधी और सहनशीलता समर्थक आपस में भिड़ गये हैं आपने ऐसे कई नेताओं के बयान सुने होंगे जो सरकार में मंत्री हैं, सासंद हैं और नेता भी हैं जो कई संदर्भों में पाकिस्तान भेजने की बात कर चुके हैं। अब कौन तय करेगा कि भारत की बदनामी किससे होती है
जनवरी 2013 में 'विश्वरूपम' फिल्म के रीलीज होने पर हंगामा हुआ तो अभिनेता कमल हसन ने कहा था, 'मैं एक कलाकार हूं। मेरा किसी धर्म के प्रति कोई झुकाव नहीं है। न तो मैं लेफ्ट हूं न राइट हूं। मैं फेड अप हो चुका हूं। मुझे नहीं पता क्या चल रहा है। मैं किसी दूसरे राज्य में सेकुलर प्लेस की तलाश में हूं। अगर कुछ दिनों में वो जगह नहीं मिली तो मैं बाहर के सेकुलर मुल्क में चला जाऊंगा।'
तब किसी ने नहीं कहा कि कमल हसन के इस बयान से भारत की बदनामी हो गई। असहनशीलता नहीं होती तो प्रधानमंत्री की आलोचना करने पर अरुण शौरी के बेटे को क्यों निशाना बनाया गया। क्या हमें इस प्रवृत्ति पर खुलकर बात नहीं करनी चाहिए। क्या यही असहनशीलता नहीं है कि देश की बदनामी हो रही है। देश में असहनशीलता बढ़ रही है इस बात से बदनामी कैसे हो जाती है।
आप आमिर के डर को नहीं समझेंगे क्योंकि...
आमिर ख़ान ने एक इंटरव्यू में कहा है कि देश में पिछले छह-आठ महीनों में हालात बुरे हुए हैं और इन दिनों हुई कुछ घटनाओं से उनकी (हिंदू) पत्नी चिंतित हो गईं और कहा कि क्या हमें भारत छोड़कर कहीं और चले जाना चाहिए। आमिर के इस बयान से मुझे दुख हुआ। ऐसा लगा जैसे किसी जॉइंट फ़ैमिली का कोई सदस्य यह कहे कि मुझे इस घर में रहने से डर लग रहा है क्योंकि मुझे आशंका है कि कोई मेरा नुक़सान कर देगा।
आप ऐसी आशंका पर दो तरह की प्रतिक्रिया जता सकते हैं। एक, आप कहेंगे कि बकवास मत करो, तुम्हारी आशंका ग़लत है, देश में सबकुछ ठीकठाक है। दो, आप पूछेंगे कि आख़िर तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है? आओ, बैठकर बात करते हैं।
यदि आप पहली श्रेणी में हैं तो आप वही कहेंगे जो बीजेपी नेताओं और समर्थकों ने आमिर ख़ान के बयान पर कहा है। आमिर देश को बदनाम कर रहे हैं। यदि देश में इतने बुरे हालात होते तो आमिर आज स्टार नहीं होते। आमिर यदि भारत में सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे तो वह दुनिया के किसी भी इलाक़े में सुरक्षित महसूस नहीं करेंगे। आमिर देश से जाना चाहें तो ख़ुशी से जाएं, कोई उन्हें नहीं रोकेगा।
यदि आप दूसरी श्रेणी में होंगे तो आप ऐसा कुछ नहीं कहेंगे। आप कहेंगे कि आमिर, मुझे बताएं कि आपको ऐसा क्यों लग रहा है। यदि आपको लगता है कि पिछले कुछ महीनों में हालात बिगड़े हैं तो हम उन हालात को सुधारेंगे। जिनसे आपको असुरक्षा महसूस हो रही है, उन कारणों को हम दूर करेंगे। हम आपको कहीं नहीं जाने देंगे क्योंकि यह देश जितना मेरा है, उतना ही आपका है।
पहली टाइप की प्रतिक्रिया क्यों आ रही है, यह समझना मुश्किल नहीं। बीजेपी और मोदी समर्थकों को लग रहा है कि देश में जो हालात हैं, वे तो पहले से ही इतने बुरे थे, यह आज की बात नहीं है। पहले भी हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए हैं। पहले भी मुसलमानों को हिंदू इलाक़ों में घर नहीं मिलता था। पहले भी मुसलमानों के लिए क*आ शब्द इस्तेमाल होता था। पहले भी मुसलमानों पर भद्दे चुटकुले बनते थे। पहले भी धर्म के आधार पर वोट पड़ते थे। तो आज नया क्या हो गया?
दूसरा तबका इसका जवाब यह कहकर देता है कि हां, पहले भी हालात बुरे थे और आप जैसों के कारण ही बुरे थे मगर अब तो और बुरा हो गया है। आज एक मुसलमान को केवल इसलिए मार डाला जाता है कि आप जैसों की विचारधारा से प्रेरित एक हिंदू भीड़ के मुताबिक़ वह अपने घर में गोमांस पका रहा था। नया यह है कि सत्तारूढ़ दल के मंत्री इसे एक सामान्य दुर्घटना बताते हैं और सत्तारूढ़ दल के नेता गोमांस खानेवाले बाक़ी लोगों के साथ भी ऐसा ही सुलूक करने की चेतावनी देते हैं। नया यह है कि देश का प्रधानमंत्री इस मामले में अपने होंठ सी लेता है और तब तक नहीं बोलता जब तक देश के राष्ट्रपति इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करते।
बीजेपी समर्थक कहते हैं कि यह एक फुंसी है जो कभी-कभार चेहरे पर आ निकलती है। लेकिन सेक्युलर तबक़े का मानना है कि यह जो दादरी कांड हुआ, वह अचानक नहीं हुआ। भारत के चेहरे पर यह फोड़ा अचानक नहीं उभरा। भारत के ख़ून में नफ़रत का ज़हर जो पहले भी भरा जा रहा था, वह अब और तेज़ी से भरा जा रहा है और आगे और फोड़े निकल सकते हैं।
दोनों पक्षों में सोच का यही अंतर है। मैं दूसरे पक्ष के साथ हूं और मेरा मत है कि आप उनकी चिंताओं को इसलिए नहीं समझेंगे कि आप आमिर ख़ान नहीं हैं…कि आप मुसलमान नहीं हैं। आपके साथ वैसा कुछ नहीं होता जैसा उनके साथ होता है।
मैं आपको दो घटनाएं बताता हूं
पहली घटना जिस दिन सरबजीत को पाकिस्तानी जेल में कुछ क़ैदियों ने पीट-पीटकर मार डाला था, उसी शाम दिल्ली के पास एक लोकल ट्रेन में कुछ राष्ट्रभक्तों ने साथ ही यात्रा कर रहे कुछ मुसलमान लड़कों को यह कहते हुए पीट दिया कि तुम लोगों ने सरबजीत की जान ले ली। अब यह असहिष्णुता नहीं तो क्या है, लेकिन आपको दिखती नहीं क्योंकि आप मुसलमान नहीं है।
दूसरा वाक़िया मेरे दफ़्तर का है। एक मीटिंग हो रही थी जिसमें एक फ़ॉन्ट का रंग डिसाइड होना था। हरे और नीले में पर राय बंटी हुई थी। एक सज्जन जो चुटिया धारण करते हैं, नीले के पक्ष में थे। उनका तर्क था, ‘हम मुसलमानों का रंग क्यों चुनें?’ उस मीटिंग में एक मुसलमान भी था लेकिन चुटियाधारी सज्जन को उसका ख़्याल नहीं रहा। सोचिए, उसे कैसा लगा होगा यह सुनकर? अगर उसके ज़ेहन में यह ख़्याल आता है कि इस देश में उसके प्रति असहिष्णुता बढ़ी है तो वह क्या ग़लत सोचता है!
एक स्त्री कैसे इस देश में रहती है, घर, दफ़्तर या सड़क पर क्या-क्या सहती है, यह आप तब तक नहीं जान सकते जब तक आप ख़ुद एक औरत न हों। उसी तरह एक मुसलमान, एक दलित, एक पिछड़ा इस देश में क्या-क्या झेलता है, यह वही जान सकता है जो ख़ुद मुसलमान है, दलित है, पिछड़ा है। इसलिए सारे सवर्ण हिंदू भाइयों को तो यही लगता है कि देश में सबकुछ भलाचंगा है, सबकुछ ठीकठाक है।
दिल्ली में हुए ऊबर टैक्सी कांड के बाद हर स्त्री किसी टैक्सी में अकेले बैठने से डरती है कि कहीं इसका ड्राइवर भी वैसा ही न हो। क्या उसका डरना ग़लत है? क्या उसको नहीं डरना चाहिए? मेरी पत्नी रोज़ टैक्सी में जाती है और जब तब वह दफ़्तर नहीं पहुंच जाती, मैं उसका रूट ट्रैक करता रहता हूं। क्या मैं ग़लत करता हूं? निश्चित तौर पर 99 प्रतिशत ड्राइवर अच्छे होंगे और वे स्वभाव से या फिर पकड़े जाने के डर से ऐसा कोई ग़लत काम नहीं करेंगे लेकिन उनकी पहचान कैसे हो। इसलिए मुझे और मेरी पत्नी को डर लगता है।
इसी तरह कोई भी मुसलमान यह कैसे तय करे कि वह जिस बस या ट्रेन में जा रहा है, उसमें बैठा हिंदू वैसा ही नहीं है जैसे कि उस ट्रेन में थे जिसकी बात मैंने ऊपर की? किसी गांव में रहनेवाला मुसलमान कैसे निश्चिंत हो कि कल कोई भगवा जत्था उसके किचन की तलाशी लेने नहीं आएगा कि कहीं वहां गोमांस तो नहीं पक रहा? दफ़्तर में काम करनेवाला कोई मुस्लिम कैसे माने कि उसके साथ काम करनेवाले हिंदू साथी आपसी वार्तालाप में उसी तरह की बातचीत नहीं करते जैसे कि ऊपर बताए वाक़िए में चुटियाधारी सज्जन कर रहे थे।
इसलिए उनका शंकित होना लाज़िमी है। जब वे शंकित होते हैं और डरते हैं तो वे कभी यह नहीं कहते कि सारे हिंदू हमारे दुश्मन हैं। वे बस यही कहते हैं कि हमें पता चला है कि हिंदुओं में से कुछ लोग हमसे घृणा करते हैं और इतनी घृणा करते हैं कि हमारी जान ले सकते हैं। अगर आप हिंदू हैं और आप उनसे वैसी घृणा नहीं करते तो आप जवाबी सवाल करते हैं कि क्या बेक़ार की बात करते हो, सबकुछ ठीकठाक है। लेकिन सच्चाई यही है और यह आप भी जानते हैं कि ऐसे लोग कम ही सही लेकिन इस देश में हैं और ऐसे लोग और ऐसी सोच इस देश में बढ़ती ही जा रही है।
मंगलवार, 24 नवंबर 2015
रियल लाइफ हीरो
आज मेरे दिल के अंदर आमिर खान और शाहरुख खान की लोकप्रियता और ज्यादा बढ़ गई है क्योंकि उन्होंने एक सच्चे भारतीय होने के नाते एक प्रधानमंत्री को अपने मन का आइना दिखाया साठ साल तक कांग्रेस ने राज किया कभी किसी के ऊपर बहस नहीं हुई लेकिन आज 18 महीनों में क्या हो गया जब कोई एक व्यक्ति अभिव्यक्ति की बोलने की स्वतंत्रता छीनी जा रही जा रही है आज मुझे धुत्कार है इस देश के प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री के चमचों के ऊपर जो कोई भी व्यक्ति बोले उसके ऊपर कीचड़ उठाया जाता है वाकई में पहले तो केवल फिल्मों में सोचा करते थे कि यह हीरो है लेकिन यह तो रियल लाइफ में भी हीरो निकले जो अपने मन की बात पूरे हिंदुस्तान के बीच में रख दी
देशभक्ति का सर्टीफीकेट
आमिर खान: आज मैंने मुम्बई की सड़क पर कुछ खा लिया इसीलिए मेरे पेट में दर्द है
अनुपम खेर: क्या बात कर रहे हैं आप आमिर.. जिस देश ने आपको सब कुछ दिया आपको स्टार बना दिया आज आप बोल रहे हैं की उस देश के खाने से आपको पेट दर्द हुवा?
आमिर: अनुपम, मुझे ज़्यादा दर्द हो रही है लगता है डॉक्टर के पास जाना होगा
अनुपम: आप डॉक्टर के पास जाएंगे और देश की छवि को खराब करेंगे? आप बताना क्या चाहते हैं कि हमारे देश से की मिटटी से ऊगा हुवा अन्न आपको पेट दर्द देता है? ये देश जो वीर जवानो का है अलबेलों का मस्तानो का है. उस देश का अन्न सड़ा है?
आमिर: यार अनुपम मुझे जाने दो.. वरना मुझे अब उलटी हो जायेगी
अनुपम: अच्छा, उस समय आपको उलटी क्यों नहीं हुई जब मुम्बई में ब्लास्ट हुवे थे? उस समय आपको उलटी क्यों नहीं हुई जब कश्मीरी पंडित भगाए गए.. उस समय उलटी क्यों नहीं हुई आपको जब मैंने पूरी पिक्चर में घुटने मोड़ के एक्टिंग की थी?
आमिर: अनुपम, भाई तू इमोशनल हो रहा है.. मुझे जाने दो वरना मेरी जान निकल जायेगी दर्द से
अनुपम: अच्छा.. अब जान निकलने लगी.. तब कहाँ थे तुम जब सीमा पर हमारे सैनिकों की जान निकलती है? तब कहाँ चले जाते हो तुम जब केजरीवाल भूख से जान देने वाला होता है? तब कहाँ चले जाते हो तुम जब मेरी किरण को करन जौहर लाइन मारता है? तुम्हारी जान उस समय नहीं निकली जब भगत सिंह को फांसी लगी?
आमिर: सच कहते हो अनुपम.. मेरी आँखें खुल गयी दोस्त.. मोदी जी बेस्ट है.. मोदी जी अवतार हैं.. साक्षी महाराज युग पुरुष हैं.. योगी आदित्यनाथ महापुरुष हैं.. मोदी जी से भारत है मोदी जी से समाज है.. मोदी जी नमो नमो.. बस नमो नमो.. नमो नमो..जय नमो नमो
अनुपम: जा रे पगले डॉक्टर को दिखा ले.. अब रुलाएगा क्या मुझे.. तू सच्चा देशभक्त है मेरे यार.. तू भारत माँ का सपूत है
शुक्रवार, 20 नवंबर 2015
मेरा भारत महान की हकीकत
एक रेड लाईट एरिया मे क्या खूब बात लिखी पाई गई...
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"यहाँ सिर्फ जिस्म बिकता है,
ईमान खरीदना हो तो अगले चौक पर 'पुलिस स्टेशन' हैं |"
,
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आप चाहते हैं,
कि आपकी तानाशाही चले और कोई आपका विरोध न करे..
तो आप भारत में न्यायाधीश बन जाइये,
.
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आप चाहते हैं,
कि आप एक से बढ़कर एक झूठ बोलें अदालत में,
लेकिन कोई आपको सजा न दे,
तो आप वकील बन जाइये,
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कोई महिला चाहती हो
कि वो खूब देह व्यापार करे
लेकिन कोई उनको वेश्या न बोले,
तो बॉलीवुड में हेरोइन बन जाये.
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आप चाहते हैं,
कि आप खूब लूट मार करें,
लेकिन कोई आपको डाकू न बोले,
तो आप भारत में राजनेता बन जाइये,
.
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आप चाहते हैं,
कि आप दुनिया के हर सुख मांस,मदिरा,स्त् री
इत्यादि का आनंद लें,
लेकिन कोई आपको भोगी न कहे,
तो किसी भी धर्म के धर्मगुरु बन जाओ.
.
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आप चाहते हैं,
कि आप किसी को भी बदनाम कर दें,
लेकिन आप पर कोई मुकदमा न हो,
तो मीडिया में रिपोर्टर बन जाइये,
यकीन मानिये..
कोई आप का बाल भी बाँका नहीं कर पाएगा.
भारत में,
हर 'गंदे' काम के लिए एक वैधानिक पद उपलब्ध
है,
इसीलिए मेरा भारत महान है।
,
बात कडवी जरूर है
लेकिन
सच्ची एवं दमदार है।
रविवार, 15 नवंबर 2015
ये कैसी है "मन की बात"
***ये कैसी है उसके 'मन की बात'***
वो दाल पे नहीं बोलता
वो प्याज पे नहीं बोलता
वो व्यापम घोटाले पे नही बोलता
वो फर्जी डिग्री हलफनामे पे नहीं बोलता
वो नेताओ की बढ़ती बेशुमार दौलत पे नहीं बोलता
वो महंगाई पे नहीं बोलता
वो दलितों पे अत्याचार पे नहीं बोलता
वो हत्याओं पे नहीं बोलता
वो बलात्कारों पे नहीं बोलता
वो दंगो पे नहीं बोलता
वो किसान आत्महत्याओं पे नहीं बोलता
वो मरते जवानो पे नहीं बोलता
वो रिकार्ड तोड़ सिसफायर पे नहीं बोलता
वो कश्मीर में लहराते isi और पाकिस्तान के जंडे पे नहीं बोलता
वो शिक्षा पे नहीं बोलता
वो स्वास्थ्य पे नहीं बोलता
वो भ्रष्टाचार पे नहीं बोलता
वो राइट टू इन्फ़ॉर्मेशन पे नहीं बोलता
वो समान पद समान पेंशन पे नहीं बोलता
वो बुलेट ट्रेन पर नहीं बोलता
वो महंगी दवाईयां पे नहीं बोलता
वो हॉस्पिटल में महंगे इलाज पे नहीं बोलता
वो स्कूल-कॉलेज की बेतहाशा महंगी पढ़ाई फ़ीस पे नहीं बोलता
वो कार, होम लोन 8% और Education लोन 14%पे नहीं बोलता
वो हमारे दम तोड़ते उद्योगों पे नहीं बोलता
वो बिगड़ते पर्यावरण पे नहीं बोलता
वो वर्ल्ड में सस्ता देश में महंगा पेट्रोल-डीज़ल, क्रूड ऑइल पे नहीं बोलता
वो चाइना की कारस्तानी पे नहीं बोलता
वो अपने पड़ोसियों से बिगड़ते संबंधो पे नहीं बोलता
वो बिगड़ती विदेश निती पे नहीं बोलता
वो बिगड़ती अर्थव्यवस्ता पे नहीं बोलता
वो चरमराती बिगड़ती सरकारी व्यवस्थाओ पे नहीं बोलता
वो गरीब मज़दूर की रोजी-रोटी मनरेगा पे नहीं बोलता
वो बिगड़ता व्यवसाय पे नहीं बोलता
वो 1 करोड़ सालाना छात्रो को रोजगार देने पे नहीं बोलता
वो देश भर में लोकायुक्त हो पे नहीं बोलता
लेकीन
वो रेडीयो पर बोलता है..
वो विदेश में जा कर बोलता है...
वो चुनाव प्रचार में बोलता है..
ये कैसी है उसके 'मन की बात' ??
आप भी कुछ मत बोलना
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आज कलम का कागज से, मै दंगा करने वाला हूँ। मीडिया की सच्चाई को मैं, नंगा करने वाला हूँ। मीडिया जिसको लोकतंत्र का, चौंथा खंभा होना था। खबरों क...
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मुसलमानों को निशाना बनाकर वो हिन्दू को एकजुट कर वोट बैंक बनाती है, और दलितों को ये संघी जानते है की ये लतखोर हैं, ये कितना भी लात खायेंगे,...
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Copy paste आप सभी साथी इस पर अपनी प्रतिक्रिया दे हजारो वर्षो पहले एशिया महाद्वीप में एक राजवंश रहा करता था जिसे हम इक्ष्वाकु राजवंश या सूर...
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अगर आप भी इस फोन को यूज करना चाहते हैं तो आपको दो मई का इंतजार करना होगा. इस मोबाइल फोन को भारत की ही कंपनी ‘डोकोस’ लेकर आ रही है. कंपनी ...
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1. Recruitment Services You can start your own firm of providing recruitment services to other companies. You just need good data of can...